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नवम उद्देशक - राजवैभव आदि परिदर्शन - विषयक प्रायश्चित्त
राजवैभव आदि परिदर्शन-विषयक प्रायश्चित्त
जे भिक्खू रणो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं अइगच्छमाणाण वा णिग्गच्छमाणाण वा पयमवि चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ ॥ ८॥
जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं इत्थीओ सव्वालंकारविभूसियाओ पयमवि चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं
वा साइज्जइ ॥ ९॥
आते हुए
कठिन शब्दार्थ अइगच्छमाणाण नगर में प्रवेश करते हुए, णिग्गच्छमाणाण निकलते हुए नगर से निष्क्रमण करते हुए, पयमवि - कदमभर भीएक कदम भी, चक्खुदंसणपडिवाए - आँखों से देखने की इच्छा से, अभिसंधारेइ अभिसंधारण करता है उधर जाने हेतु मन में विचारता है, सव्वालंकारविभूसियाओ सर्वालंकारविभूषिता - सब प्रकार के आभूषणों से सुशोभित ।
भावार्थ - ८. जो भिक्षु नगर में प्रवेश करते हुए या नगर से निकलते हुए - निष्क्रमण करते हुए क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा को नेत्रों से देखने हेतु एक कदम भी उधर रखने का विचार करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
९. जो भिक्षु क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा की सब प्रकार के अलंकार से सुशोभित रानियों को नेत्रों से देखने की इच्छा लिए एक कदम भी उस ओर जाने का विचार करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है ।
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• ऐसा करने वाले भिक्षु को गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - राजतन्त्र के युग में लौकिक दृष्टि से राजा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान था । जब भी वह बाहर से अपनी राजधानी में प्रवेश करता तो अत्यन्त साज-सज्जा और ठाट-बाट लिए होता। साथ में सेनापति आदि अधिकारियों सहित पैदल सेनाएँ चलतीं, हाथी, घोड़े, गाजे बाजे आदि होते । राजा की सवारी को देखने हेतु लोग उमड़ पड़ते, छतों पर चढ़ जाते, सड़कों पर खड़े रहते । राजा जब किसी प्रयोजन हेतु राजधानी से निष्क्रमण करता तब भी वही शान-शौकत एवं ठाट-बाट दिखलाई पड़ता ।
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