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निशीथ सूत्र
राजतन्त्रात्मक शासन प्रणाली में राजा को सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वातिशय युक्त प्रदर्शित करने का विशेष भाव उद्दिष्ट रहता ताकि प्रजा पर उसका भारी दबदबा और प्रभाव बना रहे।
वैराग्यातिशय युक्त, त्याग-तपोमय जीवन के धनी, संयमाराधना परायण भिक्षु के लिए बाह्य वैभव, ऐश्वर्य, सज्जा आदि का कोई महत्त्व नहीं होता। अत एव इन सूत्रों में राजा तथा रानियों को देखने हेतु एक कदम भी उधर जाने का विचार करना दोषपूर्ण, प्रायश्चित्त योग्य बतलाया गया है, क्योंकि बाह्य सत्ता, शक्ति, विभूति, सौन्दर्यसज्जा इत्यादि से आकृष्ट होना अपने साधनामय पथ से विचलित होना है। उन्हें देखकर मन में तदुन्मुख भोगानुरंजित भाव भी उत्पन्न हो सकते हैं, जिनसे भिक्षु की व्रताराधनामय, संवर-निर्जरा मूलक चर्या व्याहत हो सकती है।
आखेट हेतु निर्गत राजा से आहार-ग्रहण-विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं मंसखायाण वा मच्छखायाण वा छविखायाण वा बहिया णिग्गयाणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ॥ १०॥
कठिन शब्दार्थ - मंसखायाण - माँसखादक - खाद्य हेतु मांस प्राप्ति के प्रयोजनवश, मच्छखायाण - मत्स्यखादक - खाद्य हेतु मत्स्य - मछली प्राप्ति के प्रयोजनवश, छविखायाणछविखादक - खाद्य हेतु चँवले, मूंग आदि की फलियाँ पाने के प्रयोजनवश, बहिया - बाहर, णिग्गयाणं - निर्गत - निकले हुए, गए हुए। .
भावार्थ - १०. जो भिक्षु माँस, मछली या चॅवले, मूंग आदि की फली - इन्हें भक्ष्य रूप में प्राप्त करने हेतु बाहर गए हुए क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय राजा (राजा के यहाँ) से अशन-पान-खाद्य-स्वाध रूप चतुर्विध आहार ग्रहण करता है या ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - इस सूत्र में माँस, मछली तथा चॅवले, मूंग आदि की फलियाँ भक्ष्यार्थ प्राप्त करने हेतु राजा के बाहर निर्गत होने या जाने का जो उल्लेख हुआ है, उससे राजाओं की आखेट-प्रियता सूचित होती है। ___माँस प्राप्त करने हेतु वन में हिरण आदि का शिकार करना, मछलियाँ प्राप्त करने हेतु
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