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निशीथ सूत्र
पिंडवायपडियाए णिक्खमइ वा पविसइ वा णिक्खमंतं वा पविसंतं वा साइज्जइ, तंजहा - कोट्ठागारसालाणि वा भंडागारसालाणि वा पाणसालाणि वा खीरसालाणि वा गंजसालाणि वा महाणससालाणि वा॥७॥ ___कठिन शब्दार्थ - इमाई - इन, छद्दोसाययणाई - छह दोष स्थान, परं - अनन्तर - अधिक, चउरायपंचरायाओ - चार-पाँच रात से, तंजहा - वे इस प्रकार हैं, कोट्ठागारसालाणिकोष्ठागारशाला – गेहूँ, चावल, चने, जो आदि के कोठार, भंडागारसालाणि - भाण्डागारशालासोना, चाँदी, जवाहिरात आदि के भण्डार, पाणसालाणि - पानशाला - विविध मद्यादि एवं पेय पदार्थ रखने के स्थान, खीरसालाणि - क्षीरशाला - दूध तथा उससे निष्पन्न दही, घृत, मक्खन आदि रखने के स्थान वर्तमान में दूध की डेरियाँ जैसे स्थान, गंजसालाणि - गंजशाला - विविध सामग्री-संग्रह-स्थान, महाणससालाणि - महानसशाला - पाकाशय या रसोईघर।
भावार्थ - ७. जो भिक्षु क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा के इन (आगे कथ्यमान) छह दोष-स्थानों के संबंध में चार-पाँच दिन के भीतर जानकारी, पूछताछ या गवेषणा किए बिना गाथापति कुलों की ओर भिक्षार्थ गमन करता है, उनके घर में-आवास-स्थानों में प्रवेश करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
वे छः दोष-स्थान इस प्रकार हैं -
१. कोष्ठागारशाला, २. भाण्डागारशाला, ३. पानशाला, ४. क्षीर (दुग्ध-) शाला, ५. गंजशाला एवं ६. महानसशाला।
विवेचन - किसी राज्य में विहरणशील भिक्षु यदि संयोगवश राज्य के पाट-नगर या राजधानी में चला जाए तो उसे वहाँ चार-पाँच दिन के भीतर राजा के कोष्ठागार आदि छह दोषाविष्ट स्थानों के संबंध में भलीभाँति गवेषणा - जाँच-पड़ताल कर जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। क्योंकि भिक्षु के लिए यह वांछित है कि वह उसी स्थान पर प्रवास करे जहाँ उसकी संयम साधना निरापद रहे, जहाँ का वातावरण धर्माराधना के प्रतिकूल न हो।. __ यद्यपि आध्यात्मिक साधना का प्रमुख आधार तो साधक स्वयं है, उसकी आत्मा है, किन्तु बाह्य वातावरण की विपरीतता भी न रहे ऐसा भी अपेक्षित है। अत एव आन्तरिक जागरूकता हेतु भिक्षु के लिए सूत्रगत छह दोषाशंकित स्थानों की सम्यक् गवेषणा न कर वहाँ रुकना, प्रवास करना दोषपूर्ण एवं प्रायश्चित्त योग्य बतलाया गया है।
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