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निशीथ सूत्र
निशीथ भाष्य में अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कंबल एवं पादपोंछन के रूप में आठ प्रकार का राजपिण्ड निरूपित हुआ है।
यद्यपि वस्त्र, पात्र, कंबल एवं पादपोंछन के साथ उपर्युक्त पिण्ड धातु विषयक व्युत्पत्ति घटित नहीं होती, क्योंकि ये भोज्य सामग्री से भिन्न हैं। किन्तु पिण्ड रूप में भुज्यमान एवं सेव्यमान आहार सामग्री की तरह वस्त्रादि चारों पदार्थ भी निरन्तर आवश्यक होते हैं। इसलिए साहचर्य की निरन्तरता के कारण इन्हें भी पिण्ड रूप में उपलक्षित किया गया है। पिण्ड का यह लक्षणा गर्भित अर्थ है। .. राजा के अन्तःपुर में प्रवेश एवं भिक्षा ग्रहण विषयक प्रायश्चित्त ...
जे भिक्खू रायंतेउरं पविसइ पविसंतं वा साइजइ॥३॥
जे भिक्खू रायंतेपुरियं वएजा-'आउसो! रायंतेपुरिए णो खलु अहं कप्पइ रायंतेपुरं णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, इमम्हं तुमं पडिग्गहगं गहाय रायंतेपुराओ असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहट्ट दलयाहि' जो तं एवं वयइ वयंतं वा साइजइ॥ ४॥ ...
जे भिक्खू णो वएज्जा, रायंतेपुरिया वएज्जा-'आउसंतो ! समणा णो खलु तुझं कप्पइ रायंतेपुरं णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, आहरेयं पडिग्गहगं जाए अहं रायंतेपुराओ असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अभिहडं आहट्ट दलयामि' जो तं एवं वयंतं पडिसुणेइ पडिसुणेतं वा साइजइ॥५॥
कठिन शब्दार्थ - रायंतेउरं - राजा का अन्त:पुर – रनवास, रायंतेपुरियं - राजान्तःपुरिकाराजा के अन्तःपुर की प्रहरिका - पहरेदारिन, आउसो - आयुष्मती, खलु - निश्चय ही, नियमानुसार, अम्हं - मुझे, कप्पइ - कल्पता है, इमहं - इसे, तुमं - तुम, पडिग्गहगं - प्रतिग्रहगत - पात्रगत-पात्र में स्थित, गहाय - लेकर, रायंतेपुराओ - राजा के अन्तःपुर से, अभिहडं आह? - अभिहृत-आहृत कर - लाकर, दलयाहि - दो, आउसंतो समणा - आयुष्मन् श्रमण, तुझं - तुमको - आपको, दलयामि - देती हूँ - दे , पडिसुणेइ - प्रतिश्रुत करता है - स्वीकार या अंगीकार करता है।
.निशीथ भाष्यं गाथा-२५०० ।
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