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नवम उद्देशक - राजा के अन्तःपुर में प्रवेश एवं शिक्षा ग्रहण विषयक प्रायश्चित्त १८३
भावार्थ - ३. जो भिक्षु राजा के अन्तःपुर में प्रवेश करता है या प्रवेश करते हुए का अनुमोदन करता है।
४. जो भिशु राजा की अन्तःपुर प्रहरिका या पालिका से कहे - "आयुष्मती राजान्त:पुरिके! मुझे राजा के अन्तःपुर में आना-जाना नहीं कल्पता। तुम मेरा यह पात्र लेकर राजा के अन्तःपुर से अशन-पान-खाद्य-स्वाध रूप आहार गृहीत कर, अभिहृत - आहृत कर - लाकर मुझे दो," जो उसे (राजान्त:पुरिका को) इस प्रकार कहता है अथवा कहते हुए का अनुमोदन करता है। ____५. जो भिक्षु स्वयं तो ऐसा न कहे किन्तु राजा की अन्तःपुरपालिका उससे कहे - "आयुष्मन् श्रमण! आपको राजा के अन्तःपुर में आना-जाना नहीं कल्पता। आपके पात्र में गृहीत-निहित अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप आहार लाकर देती हूँ - दूँ?," जो अन्तःपुर पालिका द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर स्वीकार करता है अथवा स्वीकार करते हुए का अनुमोदन करता है। .
उपर्युक्त रूप में आचरण करने वाले भिक्षु को गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - ब्रह्मचर्य की अप्रतिहत, अविच्छिन्न, अखण्डित साधना हेतु भिक्षु के लिए राजा के अन्तःपुर में - रानियों के आवास स्थान में या रनवास में जाना नहीं कल्पता। वहाँ रानियों, दासियों एवं सेविकाओं के रूप में नारियाँ ही नारियाँ होती हैं, कोई पुरुष नहीं होता। अत: उसे संयम में विघ्नोत्पादक स्थान माना गया है। अत एव भिक्षु का राजान्तःपुर-प्रवेश निषिद्ध है, दोषयुक्त और प्रायश्चित्त योग्य है।
- भिक्षु द्वारा अन्तःपुर की पालिका या संरक्षिका को अपना पात्र देकर अन्तःपुर से अपने लिए आहार मंगवाना भी दोषयुक्त है। इतना ही नहीं यदि अन्तःपुर पालिका स्वयं भिक्षु का पात्र लेकर अन्तःपुर से आहार गृहीत कर, लाकर भिक्षु को देना चाहे तो भी भिक्षु के लिए वह स्वीकार्य या ग्राह्य नहीं होता। भिक्षु द्वारा उसे स्वीकार किया जाना एषणादि दोषयुक्त है। वैसा आहार लेने में और भी अनेक बाधाएँ हैं, आहार द्वेषवश विषाक्त, मोहवश (वश में करने हेतु) अभिमन्त्रित तथा रागवश अधिक भी हो सकता है, जिसका परिणाम ऐहिक, पारलौकिक दोनों दृष्टियों से दुःखद, क्लेशोत्पादक होता है। - उपर्युक्त सूत्रों में आये हुवे 'रायंतेपुरियं, रायंतेपुरिया' शब्दों से 'अन्तःपुर का रक्षक या रक्षिका' दोनों अर्थ समझे जा सकते हैं।
जहाँ स्त्री द्वारपालिका रहती है वहाँ स्त्रीलिंगवाची 'जो तं एवं वयंतिं पडिसुणइ'
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