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सप्तम उद्देशक - धातु कटकादि निर्माण आदि विषयक प्रायश्चित्त
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३. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से तृण की माला यावत् हरित की माला पहनता है या पहनने वाले का अनुमोदन करता है। (ऐसा करने वाले भिक्षु को गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है)
विवेचन - जब तीव्रातितीव्र वेदमोह का उदय होता है, सुदृढ, प्रबल आत्म-परिणामों के न संजो पाने के कारण भिक्षु कदाचन, कामकेलि, कामकौतुक में ग्रस्त हो जाए, ऐसा आशंकित है। वह कभी भी वैसा न करे तथा विविध प्रकार के कामकौतुकों से बचा रहे, इन सूत्रों का यह आशय है।
जब कोई व्यक्ति काम-वासना का दास बन जाता है तब वह अपने आपको आकर्षक एवं मोहक बनाने के लिए क्या-क्या लीलाएँ नहीं रचता, यह इन सूत्रों से प्रतिध्वनित है। विविध प्रकार की मालाओं को बनाना, धारण करना, पिनद्ध करना - पहनना तथा परिभोग करना इन सूत्रों में जो उल्लिखित हुआ है, वह मन की कामासक्तिपूर्ण कुतूहलप्रियता का सूचक है।
कामोद्दीप्त, मैथुन-विह्वल व्यक्ति कितना विवेकशून्य एवं आत्मविस्मृत हो जाता है, इन सूत्रों में वर्णित माला विषयक विभिन्न जघन्य तथा लज्जाजनक उपक्रमों से द्योतित होता है।
. संयम को परम पावन, अत्यन्त निर्मल और शुद्ध रखने हेतु भिक्षु कदापि ऐसे कुत्सित तथा निंद्य कृत्यों में लिप्त न हो, यह सर्वथा वांछित है।
धातु कटकादि निर्माण आदि विषयक प्रायश्चित्त - जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अयलोहाणि वा तंबलोहाणि वा तउयलोहाणि वा सीसगलोहाणि वा रुप्पलोहाणि वा सुवण्णलोहाणि वा करेइ करेंतं वा साइजइ॥४॥
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अयलोहाणि वा जाव सुवण्णलोहाणि वा धरेइ धरतं वा साइजइ॥५॥
जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अयलोहाणि वा जाव सुवण्णलोहाणि वा परिभंजइ (पिणद्धेइ) परिभुजंतं (पिणखेंतं) वा साइजइ॥६॥ ___ कठिन शब्दार्थ - अयलोहाणि - लोहे का कड़ा विशेष, तंब - ताँबा, रुप्प - - रौप्य - चाँदी, सुवण्ण - सोना।
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