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निशीथ सूत्र
जे भिक्खू रयहरणस्स एक्कं बंधं देइ देंतं वा साइज्जइ॥ ६८॥ जे भिक्खू रयहरणं कंडूसगबंधेणं बंधइ बंधंतं वा साइज्जइ॥६९॥ जे भिक्खू रयहरणं अविहीए बंधइ बंधतं वा साइजइ॥ ७०॥ (जे भिक्खू रयहरणं एगेण बंधेण बंधइ बंधतं वा साइजइ॥ ७१॥) जे भिक्खू रयहरणस्स पर तिण्हं बंधाणं देइ देंतं वा साइजइ॥७२॥ जे भिक्खू रयहरणं अणिसटुं धरेइ धरतं वा साइजइ॥७३॥ जे भिक्खू रयहरणं वोसटुं धरेइ धरतं वा साइज्जइ॥ ७४॥
जे भिक्खू रयहरणं अभिक्खणं अभिक्खणं अहिढेइ अहिडेतं वा साइजइ॥ ७५॥
जे भिक्खू रयहरणं उस्सीसमूले ठवेइ ठवेंतं वा साइज्जइ॥ ७६॥ . जे भिक्खू रयहरणं तुयट्टेइ तुयटेंतं वा साइजइ। तं सेवमाणे आवजड़ मासियं परिहारट्ठाणं उग्धाइयं ॥ ७७॥
॥णिसीहऽज्झयणे पंचमो उद्देसो समत्तो॥५॥ ___ कठिन शब्दार्थ - अइरेयपमाणं - अतिरेक प्रमाण - प्रमाणाधिक, प्रमाण से बड़ा, रयहरणं - रजोहरण, सुहुमाई - सूक्ष्म - बारीक, रयहरणसीसाइं - रजोहरण की फलियाँ, बंधं - बंध - गाँठ, कंडूसगबंधेणं - कन्दुक - गेंद जैसी मोटी गांठ लगाकर बांधना, बंधइ - बांधता है, अणिसटुं - अनिसृष्ट - अकल्पनीय, वोसटुं - व्युत्सृष्ट - अपने शरीर के प्रमाण से या साढे तीन हाथ प्रमाण से अधिक दूर, अभिक्खणं - अभिक्षण - क्षणक्षणं - प्रतिक्षण, अहिढेइ - अधिष्ठित होता है, उस्सीसमूले - सिर के नीचे, ठवेइ - . स्थापित करता है - रखता है, तुयट्टेइ - त्वग्वर्तित करता है - करवट में रखता है। .
भावार्थ - ६६. जो भिक्षु प्रमाण से अधिक रूप में विद्यमान रजोहरण को धारण करता है या धारण करते हुए का अनुमोदन करता है।
६७. जो भिक्षु रजोहरण की फलियों को सूक्ष्म - बारीक-बारीक बनाता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
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