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निशीथ सूत्र
अत एव भिक्षु ऐसे आवास स्थानों में गवेषणा पूर्वक प्रवेश करे ताकि इस प्रकार उसकी चर्या दोषाविल न हो जाए।
संभोग प्रत्ययिक क्रिया-विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्ख णत्थि संभोगवत्तिया किरियत्ति वयइ वयं वा साइज्जइ॥६२॥ कठिन शब्दार्थ - संभोगवत्तिया - संभोग प्रत्ययिक।
भावार्थ - ६२. 'संभोग प्रत्ययिक क्रिया नहीं लगती', जो भिक्षु इस प्रकार वचन बोलता है या बोलते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ... __विवेचन - 'सम्' उपसर्ग और 'भुज्' धातु के योग से संभोग शब्द निष्पन्न होता है। 'सह भोजन अथवा एकत्र भोजनं संभोगः' एक साथ, एक पंक्ति या मंडल में भोजन करना संभोग' कहा जाता है। इसी प्रकार और भी आवश्यक कार्य जो गण के भिक्षु एक साथ करने के अधिकारी हैं, संभोग शब्द द्वारा अभिहित होते हैं।
जिन भिक्षुओं के सहभोजन इत्यादि पारस्परिक संबंध होते हैं, उन्हें सांभोगिक कहा जाता है। वैसा कोई सांभोगिक भिक्षु भिक्षाचर्या आदि में यथेष्ट गवेषणा न करता हुआ कोई दोष लगाता है, उस द्वारा आनीत भिक्षा का जो साधु उपयोग करते हैं, उनको भी उस दोष की क्रिया लगती है। उसे संभोग प्रत्ययिक क्रिया कहा जाता है।
___ 'संभोग प्रत्याययति, इति संभोग प्रत्यय, संभोग प्रत्ययिका वा' इस विग्रह के अनुसार पारस्परिक सांभोगिकता की प्रतीति कराने से इस क्रिया को उक्त संज्ञा से अभिहित किया जाता है। - उपयोग योग उपधि को ध्वस्त कर परराने का प्रायश्चित्त .
जे भिक्खू वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा अलं थिरं धुवं धारणिज्जं पलिछिंदय पलिछिंदय परिट्ठवेइ परिढुवेंतं वा साइजइ॥६३॥
जे भिक्खू लाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा अलं थिरं धुवं धारणिज्जं पलिभिंदिय पलिभिंदिय परिढुवेइ परिटेवंतं वा साइजइ॥ ६४॥
जे भिक्खू दंडगं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणसूई वा पलिभंजिय पलिभंजिय परिद्ववेइ परिहवेंतं वा साइजइ॥६५॥
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