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पंचम उद्देशक - मुखवीणिका आदि बनाने एवं बजाने का प्रायश्चित्त
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जे भिक्खू पत्तवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइजइ ॥५३॥ जे भिक्खू पुप्फवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ॥ ५४॥ जे भिक्खू फलवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ॥ ५५॥ जे भिक्खू बीयवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ॥५६॥ जे भिक्खू हरियवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइजइ॥ ५७॥
जे भिक्खू अण्णयराणि वा तहप्पगाराणि वा अणुदिण्णाई सदाइं उदीरेइ उदीरेंतं वा साइज्जइ॥५८॥
कठिन शब्दार्थ - मुहवीणियं - मुखवीणिका, दंतवीणियं - दन्तवीणिका, उट्ठवीणियंओष्ठवीणिका, णासावीणियं - नासावीणिका, कक्खवीणियं - कक्ष- काँख वीणिका, हत्थवीणियं - हस्तवीणिका, णहवीणियं - नखवीणिका, पत्तवीणियं .. पत्रवीणिका, पुष्फवीणियं - पुष्पवीणिका, फलवीणियं - फलवीणिका, बीयवीणियं - बीजवीणिका हरियवीणियं - हरितवीणिका, वाएइ - बजाता है, तहप्पगाराणि - उस प्रकार के, अणुदिण्णाई - अनुदीर्ण - अनुत्पन्न, सहाई - शब्दों को, उदीरेइ - उदीरित - उत्पन्न . करता है। . भावार्थ - ३४. जो भिक्षु मुख को वीणा की तरह करता है, बनाता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ___३५. जो भिक्षु दाँतों को वीणा की तरह करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
३६. जो भिक्षु होठों को वीणा की--तरह करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। . ३७. जो भिक्षु नासिका को वीणा की तरह करता या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
३८. जो भिक्षु काँख को वीणा की तरह करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। .. ३९. जो भिक्षु हाथ को वीणा की तरह करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ४०. जो भिक्षु नख को वीणा की तरह करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
४१. जो भिक्षु (वृक्ष विशेष के) पत्ते को वीणा की तरह करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
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