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निशीथ सूत्र
आ सकता है। क्योंकि बहुमूल्य वस्तुओं का खोया जाना, किसी द्वारा छिपा लिया जाना, स्तेय. बुद्धि से उठा लिया जाना भी ( वहाँ) संभावित रहता है। ऐसी स्थिति में भिक्षु पर अज्ञानवश लोग मिथ्या आरोप भी लगा सकते हैं। इस प्रकार की आशंकाएँ वहाँ विद्यमान रहती हैं।
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भिक्षु की शुद्ध, संयत चर्या अविकल अविचल रूप में चलती रहे, इस हेतु उसे आशंकनीय स्थानों तथा हेतुओं से सदैव बचते रहना चाहिए।
मुखवीणिका आदि बनाने एवं बजाने का प्रायश्चित्त
जे भिक्खू मुहवीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ३४ ॥ जे भिक्खू दंतवीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ३५ ॥ जे भिक्खू उट्टवीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ३६ ॥ जे भिक्खू णासावीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ३७ ॥ जे भिक्खू कक्खवीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ३८ ॥ जे भिक्खू हत्थवीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ३९ ॥
४३ ॥
४४ ॥
भिक्खू वीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ४० ॥ जे भिक्खू पत्तवीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ४१ ॥ जे भिक्खू पुप्फवीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ ४२ ॥ जे भिक्खू फलवीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ जे भिक्खू बीवीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ जे भिक्खू हरियवीणियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ॥ जे भिक्खू मुहवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ जे भिक्खू दंतवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ जे भिक्खू उट्टवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ४८ ॥ जे भिक्खू णासावीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ४९ ॥
४५ ॥
४६ ॥
४७ ॥
भिक्खू क्वीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ५० ॥ जे भिक्खू हत्थवीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ५१ ॥ जे भिक्खू वीणियं वाएइ वाएंतं वा साइज्जइ ॥ ५२ ॥
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