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पंचम उद्देशक - सचित्त, चित्रित-विचित्रित दण्ड बनाने आदि का प्रायश्चित्त १२५
जे भिक्खू विचित्ताई दारुदंडाणि वा वेणुदंडाणि वा वेत्तदंडाणि वा धरेइ धरेतं वा साइजइ॥ ३१॥
· कठिन शब्दार्थ - सचित्ताई - सचित्त, दारुदंडाणि - काठ के दण्ड, वेणुदंडाणि - बांस के दण्ड, वेत्तदंडाणि - बेंत के दण्ड, चित्ताई - चित्रित - रंग युक्त, विचित्ताई - विचित्र - विविध रंग युक्त।
भावार्थ - २६. जो भिक्षु सचित्त काष्ठदण्ड, वेणुदण्ड या वेत्रदण्ड बनाता है अथवा बनाते हुए का अनुमोदन करता है। - २७. जो भिक्षु सचित्त काष्ठदण्ड, वेणुदण्ड.या वेत्रदण्ड धारण करता है या धारण करते हुए का अनुमोदन करता है।
- २८. जो भिक्षु काष्ठदण्ड, वेणुदण्ड या वेत्रदण्ड चित्रित करता है - रंगीन बनाता है, । रंगता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
२९. जो भिक्षु चित्रित - रंगीन काष्ठदण्ड, वेणुदण्ड या वेत्रदण्ड धारण करता है अथवा धारण करते हुए का अनुमोदन करता है। .. ..:३०. जो भिक्षु काष्ठदण्ड, वेणुंदण्ड या वेत्रदण्ड विचित्रित - विभिन्न रंग युक्त बनाता है, विभिन्न रंगों से रंगता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
३१. जो भिक्षु विभिन्न रंगयुक्त काष्ठदण्ड, वेणुदण्ड या वेत्रदण्ड धारण करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
विवेचन - सामान्यतः भिक्षु दण्ड (काठ आदि का डण्डा) नहीं रखता, किन्तु आवश्यकतावश वह अचित्त काष्ठ आदि का दण्ड औपग्रहिक उपधि के रूप में गृहस्थ से याचित कर ग्रहण कर सकता है। आवश्यकता के पश्चात् उसे वापस लौटा देता है। . उपर्युक्त सूत्रों में जो सचित्त काष्ठदण्ड आदि बनाने का वर्णन आया है - उसके दो अर्थ किये जाते हैं - १. सचित्त जीव सहित लकड़ी - कुछ आर्द्रता (गीलापन) वाली होने पर भी सचित्त या मिश्र होती है २. अचित्त लकड़ी होने पर भी जिसमें धुन पड़े हुए है ऐसी लकड़ी का दण्ड आदि बनावे तो जीव विराधना होने से यहाँ पर लघुमासिक प्रायश्चित्त बताया है। पूर्ण रूप से हरी लकड़ी के द्वारा दण्ड आदि बनाने में तो अधिक जीव विराधना की स्थिति होने से उसका तो अधिक प्रायश्चित्त समझना चाहिए।
वृद्धत्व, शारीरिक दौर्बल्य आदि के कारण यदि भिक्षु निरन्तर काष्ठ आदि का दण्ड • धारण करे तो वह दोष युक्त नहीं है।
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