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पंचम उद्देशक - प्रातिहारिक दण्ड आदि प्रत्यर्पण-विषयक प्रायश्चित्त
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जे भिक्खू सागारियसंतियं दंडयं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूई वा जाइत्ता तमेव रयणिं पच्चप्पिणिस्सामित्ति सुए पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणतं वा साइज्जइ॥ २१॥ ___ जे भिक्खू सागारियसंतियं दंडयं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूई वा जाइत्ता सुए पच्चप्पिणिस्सामित्ति तमेव रयणिं पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणंतं वा साइज्जइ॥ २२॥ ___ भावार्थ - १९. जो भिक्षु 'आज ही प्रत्यर्पित कर दूंगा - वापस लौटा दूंगा' यों कहता हुआ प्रातिहारिक रूप में बाहर से - शय्यातर से भिन्न गृहस्थ से दण्ड, लाठी, अवलेहनिका या बांस की सूई याचित कर उसे कल - अगले दिन वापस करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
२०. जो भिक्षु 'कल लौटा दूंगा' यों कहता हुआ प्रातिहारिक रूप में बाहर से दण्ड, लाठी, अवलेहनिका या बांस की सूई याचित कर उसे उसी दिन वापस करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ___२१. जो भिक्षु 'आज ही वापस लौटा दूंगा' यों कहता हुआ शय्यातर से दण्ड, लाठी, अवलेहनिका या बांस की सूई याचित कर उसे कल - अगले दिन वापस करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ____२२. जो भिक्षु 'कल लौटा दूंगा' यों कहता हुआ शय्यातर से दण्ड, लाठी, अवलेहनिका या बांस की सूई याचित कर उसे उसी दिन वापस करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
___ ऐसा करने वाले भिक्षु को लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ___विवेचन - इन सूत्रों में वर्णित औपग्रहिक उपधि रूप दण्ड, लाठी, अवलेहनिका तथा बांस की सूई, जो प्रत्यर्पणीय है, आवश्यकतावश भिक्षु गृहस्थ से याचित कर अपने कथन के अनुरूप प्रत्यर्पित नहीं करता, जिस दिन लौटाने के लिए कहा हो, उस दिन न लौटाकर आगेपीछे लौटाता है तो यह वचन दोष है। भिक्षु मन, वचन, काय रूप तीन योगों तथा कृत, कारित, अनुमोदित रूप तीन कारणों से असत्य का प्रत्याख्यान - त्याग किए हुए होता है। अतः वैसा करने से उसका सत्य महाव्रत धूमिल होता है।
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