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निशीथ सूत्र.
१८. जो भिक्षु 'कल लौटा दूंगा' यों कहता हुआ शय्यातर से पादपोंछन याचित कर उसे उसी दिन वापस लौटाता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
ऐसा करने वाले भिक्षु को लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - भिक्षु आवश्यकतावश एक-दो दिन के लिए गृहस्थ से, श्रावक से या शय्यातर से पादपोंछन याचित कर सकता है। याचित करते समय प्रत्यर्पण - वापस लौटाने के संबंध में जिस दिन का कथन करे, उसी दिन उसे वापस लौटाना चाहिए। क्योंकि भिक्षु । यथार्थभाषी होता है। 'जहावाइ, तहाकारी के अनुसार भिक्षु जैसा बोलता है, वैसा ही करता है। अपने वचन के विपरीत करना मिथ्या भाषण-में परिगणित होता है। इससे मृषांवाद विरमण संज्ञक द्वितीय महाव्रत दूषित होता है।
महाव्रत भिक्षु के लिए अमूल्य रत्न है। उन पर जरा भी कालुष्य - कालिख न लगे, उसे सदैव ऐसा प्रयत्न करना चाहिए।
उपर्युक्त सूत्रों में आये हुवे "पादोंछन" शब्द का अर्थ गुरु परम्परा से - 'रजोहरण' किया जाता है। उत्सर्ग मार्ग से तो पडिहारा रजोहरण लेने का निषेध ही है, किन्तु साधु का रजोहरण गुम हो गया हो, स्वाध्याय आदि भूमि में भूल गये हो, चोर आदि ले गये हो, इत्यादि प्रसंगों से उस रजोहरण की गवेषणा के लिए गृहस्थों से पडिहारा रजोहरण लेने का विधान इन सूत्रों में किया गया है। गवेषणा करने पर भी यदि नहीं मिले तो उस रजोहरण को पूर्ण रूप से ग्रहण कर सकता है। किंतु स्वयं के पास रजोहरण होते हुए भी कचरा आदि लेने के लिए पडिहारा रजोहरण नहीं लेना चाहिए।
प्रातिहारिक दण्ड आदि प्रत्यर्पण-विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू पाडिहारियं दंडयं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूई वा जाइत्ता तमेव रयणिं पच्चप्पिणिस्सामित्ति सुए पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणंतं वा साइजइ॥ १९॥
- जे भिक्खू पाडिहारियं दंडयं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूई वा जाइत्ता सुए पच्चप्पिणिस्सामित्ति तमेव रयणिं पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणंतं वा साइजइ॥ २०॥ .
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