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पंचम उद्देशक - प्रातिहारिक पादपोंछन प्रत्यर्पणा-विषयक-प्रायश्चित्त
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___ रुग्णता में औषध या पथ्य आदि के रूप में गृहस्थों के यहाँ से उनके अपने लिए सुखाए गए पत्तों को भिक्षा के रूप में लेना और उनका सेवन करना विहित है। उसमें कोई दोष नहीं लगता।
- यहाँ नीम, परवल तथा बिल्व इन तीन प्रकार के वृक्षों का उल्लेख हुआ है, जो संकेत रूप में है, इनके अतिरिक्त अन्य वृक्षों के पत्ते भी असेवनीय हैं। .
प्रातिहारिक पादपोंछन प्रत्यर्पणा-विषयक-प्रायश्चित्त . जे भिक्खू पाडिहारियं पायपुंछणं जाइत्ता तमेव रयणिं पच्चप्पिणिस्सामित्ति सुए पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणंतं वा साइजइ॥ १५॥
जे भिक्खू पाडिहारियं पायपुंछणं जाइत्ता सुए पच्चप्पिणिस्सामित्ति तमेव रयणिं पच्चप्पिणइ पञ्चप्पिणंतं वा साइजड़॥ १६॥
जे भिक्खू सागारियसंतियं पायपुंछणं जाइत्ता तमेव रयणिं पच्चप्पिणिस्सामित्ति सुए पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणंतं वा साइजइ॥ १७॥
जे भिक्खू सागारियसंतियं पायपुंछणं जाइत्ता सुए पच्चप्पिणिस्सामित्ति तमेव रयणिं पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणतं वा साइज्जइ॥ १८॥ .
कठिन शब्दार्थ - तमेव - उसी, रयणिं - रजनी - रात (दिवस), पच्चप्पिणिस्सामित्ति - प्रत्यर्पित कर दूंगा, लौटा दूंगा, सुए - श्व - कल - अगले दिन, पच्चप्पिणइ - प्रत्यर्पित करता है - लौटाता है।
. भावार्थ - १५. जो भिक्षु 'उसी दिन - आज ही वापस लौटा दूंगा' यों कहता हुआ बाहर से - शय्यातर से भिन्न गृहस्थ से प्रातिहारिक - प्रत्यर्पणीय रूप में पादपोंछन याचित कर उसे कल - अगले दिन वापस लौटाता है अथवा वैसा करते हए का अनमोदन करता है।
१६. जो भिक्षु 'कल लौटा दूंगा' यों कहता हुआ बाहर से प्रातिहारिक - प्रत्यर्पणीय रूप में पादपोंछन याचित कर उसे उसी दिन वापस लौटाता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
१७. जो भिक्षु 'आज ही वापस लौटा दूंगा' यों कहता हुआ सागांरिक - शय्यातर से पादपोंछन याचित कर उसे कल - अगले दिन वापस लौटाता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
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