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चउत्थो उद्देसओ - चतुर्थ उद्देशक
राजा आदि को वश में करने का प्रायश्चित्त
जे भिक्खू रायं अत्तीकरेइ अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ ॥ १ ॥ - जे भिक्खू रायारक्खियं अत्तीकरेइ अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ ॥ २ ॥ जे भिक्खू गरारक्खियं अत्तीकरेइ अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ ॥ ३ ॥ जे भिक्खू णिगमारक्खियं अत्तीकरेइ अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ ॥ ४ ॥ जे भिक्खू देसारक्खियं अत्तीकरेइ अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ ॥ ५ ॥
जे भिक्खू सव्वारक्खियं अत्तीकरेइ अत्तीकरेंतं वा साइज्जइ ॥ ६ ॥ कठिन शब्दार्थ - रायं राजा को, अत्तीकरेइ- अपने अधीन करता है - अपने वश में करता है, रायारक्खियं राजा का अंगरक्षक, णगरारक्खियं नगर रक्षक, णिगमारविखयंनिगम रक्षक व्यापार प्रधान स्थान या व्यापारिक मण्डी का रक्षक अधिष्ठाता या सर्वोच्च अधिकारी, देसारक्खियं - देश के रक्षक • महाराजा या सम्राट, सव्वारक्खियं सर्वरक्षक
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सबका रक्षक |
भावार्थ १. जो भिक्षु राजा को अपने अधीन या वश में करता है अथवा वश में करते हुए का अनुमोदन करता है ।
२. जो भिक्षु राजा के अंगरक्षक को अपने वश में करता है या वश में करते हुए का अनुमोदन करता है ।
३. जो भिक्षु नगररक्षक को अपने वश में करता है या वश में करते हुए का अनुमोदन करता है।
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४. जो भिक्षु निगमरक्षक को अपने वश में करता है या वश में करते हुए का अनुमोदन करता है।
५. जो भिक्षु देशरक्षक को अपने वश में करता है या वश में करते हुए का अनुमोदन करता है।
६. जो भिक्षु सर्व- रक्षक को अपने वश में करता है या वश में करते हुए का अनुमोदन करता है।
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