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तृतीय उद्देशक - नेत्र-कर्ण-दन्त-नख-मलनिर्हरण-विषयक प्रायश्चित्त
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नेत्र-भ्रूवों एवं देह-पावों के रोम-परिकर्म संबंधी प्रायश्चित्त जे भिक्खू अप्पणो दीहाई भुमगरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ॥ ६७॥ ___ जे भिक्खू अप्पणो दीहाई पासरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ॥ ६८॥
कठिन शब्दार्थ - भुमगरोमाई - भ्रूवों के बाल, पासरोमाइं - पार्श्व - शरीर के दाएँ-बाएँ पसवाडे के बाल।
भावार्थ - ६७. जो भिक्षु अपनी भौंवों के बढे हुए बालों को काटे या संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
६८. जो भिक्षु अपनी देह के पार्यों के बढे हुए बालों को काटे या संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ... विवेचन - भौंवों के बालों को गृहस्थों के समान नियमित आदत के रूप में काटना, सम्यक् स्थापित करना - संवारना, इसी प्रकार देह के दोनों पार्यों के बालों को काटना, संवारना दोषयुक्त एवं प्रायश्चित्त योग्य हैं।
नेत्र-कर्ण-दन्त-नरख-मलनिर्हरण-विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू अप्पणो अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा णहमलं वा णीहरेज बा विसोहेज वा णीहरेंतं वा विसोहेंतं वा साइजइ॥ ६९॥
· कठिन शब्दार्थ - अच्छिमलं - आँखों का मैल - गीड, कण्णमलं - कानों का मैल - कीटी, दंतमलं - दाँतों का मैल, णहमलं - नखों का मैल। __भावार्थ - ६९. जो भिक्षु अपनी आँखों का मैल - गीड आदि, कानों का मैल- कीटी, दाँतों का मेल या नखों का मैल निर्हत करे - निकाले या विशोधित करे - स्वच्छ करे या संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
- विवेचन - इस सूत्र में नेत्र आदि के मल-निर्हरण को जो दोषपूर्ण एवं प्रायश्चित्त योग्य बतलाया गया है प्रतिदिन गृहस्थों के समान इन कार्यों को करना साधु-साध्वी की आचार मर्यादा के विपरीत है।
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