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निशीथ सूत्र
५४. जो भिक्षु अपने होठों का संवाहन या परिमर्दन करे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
५५. जो भिक्षु अपने होठों की तेल, घृत, चिकने पदार्थ या मक्खन द्वारा एक बार या । अनेक बार मालिश करे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ___ ५६. जो भिक्षु अपने होठों पर लोध्र यावत् पद्मचूर्ण एक बार या अनेक बार मले - मसले अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
9. जो भिक्ष अपने होठों को अचित्त शीतल या उष्ण जल द्वारा एक बार या अनेक बार प्रक्षालित करे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
५८. जो भिक्षु अपने होठों को मुखवायु द्वारा फूत्करित करे - फूंक देकर स्वच्छ करे या रंगे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ...
विवेचन - इन सूत्रों में होठों के आमर्जन, प्रमार्जन, संवाहन, परिमर्दन, अभ्यंगन, उद्वर्तन, प्रक्षालन, फूत्कारन एवं रंजन का जो उल्लेख हुआ है, वह गृहस्थों के समान प्रतिदिन नियमित रूप से इन कार्यों को करने की दृष्टि से निषिद्ध बताया गया है। जो मोक्षमार्गानुगामी, सम्यग् . ज्ञान-दर्शन-चारित्रमूलक रत्नत्रयधारी साधु के लिए सर्वथा त्याज्य है। साधु के परिणाम तथा तत्प्रेरित कार्य सदा निर्विकार, निर्मल एवं निरवद्य रहें, यह आवश्यक है।
___उत्तरोफ-रोम-परिकर्म-प्रायश्चित्त जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं उत्तरोटुरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ॥ ५९॥
कठिन शब्दार्थ - उत्तरोट्ठरोमाई - ऊपरी होठ - मूंछ के बाल।
भावार्थ - ५९. जो भिक्षु अपने बढे हुए ऊपरी होठ के - मूंछ के बालों को काटे या सम्यक् संस्तापित करे - संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - साधु द्वारा अपने ऊपर के होठ - मूंछ के बालों को काटा जाना, सम्यक् स्थापित - सज्जित किया जाना इस सूत्र में दोषयुक्त बतलाया गया है, क्योंकि जो साधु अपनी विशुद्ध आचार संहिता और तद्गत मर्यादाओं का अनुसरण करता है, अपने संयम का
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