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तृतीय उद्देशक - वस्ति आदि के बाल काटने का प्रायश्चित्त
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जे भिक्खू अप्पणो दीहाई केसाई कप्पेज वा संठवेज्ज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ॥४७॥
जे भिक्खू अप्पणो दीहाई कण्णरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ॥४८॥
जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं णासारोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ॥ ४९॥
कठिन शब्दार्थ - वत्थीरोमाई - वस्तिरोमाणि - नाभि के नीचे का भाग - पेडू या मूत्राशय के बाल, चक्खुरोमाइं - नेत्रों के बाल, जंघरोमाहं - जंघाओं के बाल, कक्खरोमाइंकक्ष - काख के बाल, मंसुरोमाइं - श्मश्रु - दाढी-मूंछ के बाल, केसाई- केश - बाल, कण्णरोमाई - कानों के बाल, णासारोमाइं - नासिका के बाल।
भावार्थ - ४२. जो भिक्षु अपने बढे हुए पेडू या मूत्राशय के बालों को काटे या संस्थापित करे - सम्यक् स्थापित करे या संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। - ४३. जो भिक्षु अपने बढे हुए आँखों के बालों को काटे या संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रयश्चित्त आता है।
४४. जो भिक्षु अपने बढे हुए जंघाओं के बालों को काटे या संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
४५. जो भिक्षु अपने बढे हुए काख के बालों को काटे या संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
४६. जो भिक्षु अपने बढे हुए दाढी-मूंछ के बालों को काटे या संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।।
४७. जो भिक्षु अपने बढे हुए केशों, बालों को काटे या संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। .
४८. जो भिक्षु अपने बढे हुए कानों के बालों को काटे या संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लंघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
४९. जो भिक्षु अपने बढे हुए नासिका के बालों को काटे या संवारे अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करे, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
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