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निशीथ सूत्र
को खुजलाने आदि के समय शरीर में चुभ जाते हैं, पतला वस्त्र भी उनमें फंस जाता है, फट जाता है। इन स्थितियों को दृष्टि में रखते हुए स्वस्थता, समुचित व्यवहार-प्रवणता इत्यादि के कारण नखों को काटना, सुधारना अविहित नहीं है। ___इसी आगम (निशीथ सूत्र) के प्रथम उद्देशक में नखछेदनक का उल्लेख हुआ है। वहाँ नखछेदनक का नख काटने के अतिरिक्त अन्य कार्य में उपयोग करना, बिना प्रयोजन लेना, अविधिपूर्वक लेना, अविधिपूर्वक लौटाना - इनका प्रायश्चित्त कहा गया है। ___आचारांग सूत्र में अपने प्रयोजन हेतु गृहीत नखछेदनक अन्य भिक्षु को न देने का तथा जिससे लिया हो, उसे स्वयं वापस लौटाने की विधि का प्रतिपादन है*।
इनसे यह सिद्ध होता है कि आवश्यकतावश साधु द्वारा नख काटा जाना अविहित नहीं है।
यहाँ नख काटने एवं सुधारने का जो निषेध किया गया है, प्रायश्चित्त बतलाया गया है, उसका आशय यह है कि साधु अति आवश्यकता के बिना केवल आदत की दृष्टि से इस प्रकार का कोई भी कार्य नहीं करे। इसी दृष्टि से इन सूत्रों में प्रायश्चित्त बताया गया है।
वस्ति आदि के बाल काटने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू अप्पणो दीहाई वत्थीरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ॥४२॥
जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं चक्खुरोमाई कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ॥४३॥
जे भिक्खू अप्पणो दीहाई जंघरोमाई कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइजइ॥ ४४॥
जे भिक्खू अप्पणो दीहाइं कक्खरोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ॥ ४५॥
जे भिक्खू अप्पणो दीहाई मंसुरोमाई कप्पेज वा संठवेज वा कप्तं वा संठवेंतं वा साइज्जइ॥ ४६॥
* आचारांग सूत्र - २.७.१.
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