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________________ तृतीय अध्ययन - गौतम स्वामी द्वारा करुणाजनक दृश्य देखना सुसज्जित एवं कवच पहने हुए अनेकों पुरुषों को और उन पुरुषों के मध्य अवकोटक बंधन से युक्त यावत् उद्घोषित एक पुरुष को देखा । तदनन्तर राजपुरुष उस पुरुष को प्रथम चर ( चौराहे पर बैठा कर उसके आगे चाचाओं को मारते हैं तथा कशादि के प्रहारों से ताडित करते हुए वे राजपुरुष करुणाजनक स्थिति को प्राप्त हुए उस पुरुष को उसके शरीर में से काटे हुए मांस के छोटे छोटे टुकड़ों को खिलाते हैं और रुधिर का पान कराते हैं। तत्पश्चात् द्वितीय चत्वर पर उसकी आठ लघुमाताओं चाचियों को उसके आगे ताड़ित करते हैं । इसी प्रकार तीसरे चत्वर पर आठ महापिताओं (तायों) को, चौथे पर आठ महामाताओं (ताइयों) को, पांचवें पर पुत्रों को, छठे पर पुत्रवधुओं को, सातवें पर जामाताओं को, आठवें पर लड़कियों को, नवमें पर नप्ताओं (पौत्रों और दौहित्रों ) को, दसवें चत्वर पर लड़के और लड़की के लड़कियों को (पौत्रियों और दौहित्रियों) को, ग्यारहवें पर नप्तृकापतियों (पौत्रियों और दौहित्रियों के पतियों) को, बारहवें पर नप्तृभार्याओं (पौत्रों और दौहित्रों की स्त्रियों) को, तेरहवें पर पिता की बहिनों के पतियों (फूफाओं) को, चौदहवें पर पिता की भगिनियों को, पन्द्रहवें पर माता की बहिनों के पतियों को, सोलहवें पर माता की बहिनों को, सतरहवें पर मामा की स्त्रियों को, अठारहवें पर शेष मित्र, ज्ञातिजन, निजक, स्वजन, संबंधी और परिजनों को उस पुरुष के आगे मारते हैं तथा चाबुक के प्रहारों से ताड़ित करते हुए वे राजपुरुष दया के योग्य उसे पुरुष को, उसके शरीर से निकाले हुए मांस के टुकड़े खिलाते और रुधिर का पान कराते हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में गौतमस्वामी द्वारा अवलोकित करुणाजनक दृश्य का वर्णन किया गया है। जब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के प्रमुख शिष्य गौतमस्वामी बेले के पारणे के निमित्त पुरिमताल नगर में भिक्षार्थ पधारे और राजमार्ग पर पहुंचे तो वहां उन्होंने जो दृश्य देखा वह इस प्रकार है - . बहुत से सुसज्जित हस्ती तथा श्रृंगारित घोड़े एवं कवच पहने हुए अस्त्र शस्त्रों से सन्नद्ध अनेक सैनिक पुरुष खड़े हैं। उनके मध्य अवकोटक बंधन से बंधा हुआ एक पुरुष है जिसके साथ अमानुषिक व्यवहार किया जा रहा है। साथ ही उसको दिये गये दण्ड के कारण की- इसके अपने कर्म ही इसकी इस दुर्दशा का कारण है, राजा आदि कोई अन्य नहीं है इस रूप से उद्घोषणा भी की जा रही है। उद्घोषणा के बाद राज्य अधिकारी उस पुरुष को प्रथम चत्वरचौतरे पर बिठाते. हैं तत्पश्चात् उसके सामने उसके आठ चाचों-पिता के लघुभ्राताओं को बड़ी - Jain Education International ७५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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