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________________ ७४ विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध +000000000000000000000000000000000000..................... जामाउया अट्ठमे धूयाओ णवमे णत्तुया दसमे णत्तुईओ एक्कारसमे णत्तुयावई बारसमे णत्तुइणीओ तेरसमे पिउस्सियपइया चोद्दसमे पिउस्सियाओ पण्णरसमे माउसियापइया सोलसमे माउस्सियाओ सत्तरसमे मामियाओ अट्ठारसमे अवसेसं मित्तणाइणियग-सयणसंबंधिपरियणं अग्गओ घाएंति घाएत्ता कसप्पहारेहिं तालेमाणा तालेमाणा कलुणं कागणिमसाई खावेंति खावेत्ता रुहिरपाणियं च पाएंति॥६६॥ कठिन शब्दार्थ - सण्णद्धबद्धकवए - शस्त्र आदि से सुसज्जित एवं कवच पहने हुए,. अवओडय० - अवकोटक-बंधन, उग्योसिज्जमाणं - उद्घोषित, रायपुरिसा- राजपुरुष, चच्चरंसि- चत्वर (जहां चार मार्ग मिलते हों वहां) पर, णिसीयावेंति - बैठा लेते हैं, चुल्लपिउए - पिता के छोटे भाई-चाचों को, अग्गओ - आगे से, घाएंति - मारते हैं, कसप्पहारेहिं - कशा (चाबुक) के प्रहारों से, तालेमाणा - ताडित करते हुए, कलुणं - करुणा के योग्य, कागणिमंसाइं - शरीर से निकाले हुए मांस के छोटे छोटे टुकड़ों को, रुहिरपाणं - रुधिर पान, पाएंति - कराते (पिलाते) हैं, चुल्लमाउयाओ - लघु माताओंचाचियों के, महामाउयाओ - महामाता-पिता के ज्येष्ठ भाई की पत्नियों-ताइयों को, सुण्हाओस्नुषाओं-पुत्रवधुओं को, जामाउया- जामाताओं को, धुयाओ- लड़कियों को, गत्तुया - नप्ताओं-पौत्रों और दौहित्रों को, णत्तुइओ - लड़की की पुत्रियों को और लड़के की लड़कियों को, णत्तुयावई - नप्तृकापति-पौत्रियों और दौहित्रियों के पतियों को, णत्तुइणीओ - नप्तृभार्यापौत्रों और दौहित्रों की स्त्रियों को, पिउस्सियपइया - पितृष्वसृपति-पिता के बहिनों के पतियों को-बहनोइयों को, पिउस्सियाओ - पितृष्वसा-पिता की बहिनों को, माउसियापइया - मातृष्वसृपति-माता की बहिनों के पतियों को, माउस्सियाओ - मातृष्वसा-माप्ता की बहिनों को, मामियाओ - मामियों को, घाएंति - मारते हैं। : ____ भावार्थ - उस काल तथा उस समय में पुरिमताल नगर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे। परिषद् (जनता) नगर से निकली तथा राजा भी प्रभु के दर्शनार्थ पहुंचा। भगवान् ने धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश सुन कर राजा तथा परिषद् स्वस्थान लौट गई। ____ उस काल तथा उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ शिष्य श्री गौतमस्वामी यावत् राजमार्ग में पधारे। वहां उन्होंने अनेक हाथियों, घोड़ों तथा सैनिकों की तरह शस्त्रों से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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