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________________ तृतीय अध्ययन - गौतम स्वामी द्वारा करुणाजनक दृश्य देखना ४. बंदिग्रहण - कैदियों - बंदियों का ग्रहण - अपहरण बंदिग्रहण कहलाता है अर्थात् विजयसेन चोर सेनापति राजा के अपराधियों को चुरा कर ले जाता था । ५. पांथकुट्ट - पांथ अर्थात् पथिक, कुट्ट अर्थात् ताड़ित करना, पथिकों को ताडित करना । विजयसेन मार्ग में आने जाने वाले व्यक्तियों को धन आदि छीनने के लिये पीटा करता था। ६. खत्तखनन खत्त का अर्थ है । सेंध का खनन - खोदना, खत्त खनन कहलाता है। विजयसेन चोर सेनापति लोगों के घरों में सेंध लगा कर चोरी करता था । इस प्रकार ग्रामघात आदि के द्वारा विजयसेन लोगों को दुःख दिया करता था । उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि विजयसेन चोर सेनापति लोगों को विपत्तिग्रस्त करने में किसी प्रकार की ढील नहीं कर रहा था। जहां उसका प्रजा के साथ इतना क्रूर एवं निर्दय व्यवहार था वहां वह महाबल नरेश को भी नुकसान पहुंचाने में पीछे नहीं था। अनेकों बार राजा को लूटा, उसके बदले प्रजा से स्वयं कर वसूला। यही उसके जीवन का कृत्य बना हुआ था । • विजयसेन चोर सेनापति की पत्नी का नाम स्कंदश्री था जो सर्वांग सुंदरी थी। उनके अभग्नसेन नामक पुत्र था जो शरीर से हृष्ट पुष्ट, विद्या संपन्न और घर में उद्योत करने वाला था। गौतम स्वामी द्वारा करुणाजनक दृश्य देखना तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुरिमताले णयरे समोसढे परिसा णिग्गया राया णिग्गओ धम्मो कहिओ परिसा राया य पडिगओ । ७३ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी गोय जाव रायमग्गं समोगाढे, तत्थ णं बहवे हत्थी पासड़ बहवे आसे पुरिसे सण्णद्धबद्धकवए, तेसिं णं पुरिसाणं मज्झगयं एगं पुरिसं पासइ अवओडय जाव उग्घोसिज्जमाणं, तए णं तं पुरिसं रायपुरिसा पढमंसि चच्चरंसि णिसीयावेंति णिसीयावेत्ता अट्ठ चुल्लपिउए अग्गओ घाएंति घाएत्ता कसप्पहारेहिं तालेमाणा तालेमाणा कलुणं कागणिमसाई खावेंति खावेत्ता रुहिरप्पाणियं च पाएंति तयानंतरं चणं दोच्वंसि चच्चरंसि अट्ठ चुल्लमाउयाओ अग्गओ घाएंति एवं तच्चे चच्चरे अट्ठ महापिउए चउत्थे अट्ठ महामाउयाओ पंचमे पुत्ते छट्ठे सुण्हाओ सत्तमे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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