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प्रश्न - वह दुःख विपाक क्या है?
उत्तर - दुःख विपाक में हिंसादि दुष्कृत कर्मों के फलस्वरूप दुःख परिणाम पाने वाले दस जीवों के-(शेष पूर्व सूत्रानुसार) नरकगमन-पहली से सातवीं तक में जो जहाँ जन्मा, संसार भव प्रपंच-एकेन्द्रिय के असंख्य, विकलेन्द्रिय के संख्य तथा पंचेन्द्रिय के जो अनेक जन्म किये, करेंगे वे, दुःख परंपरा= एक के बाद एक नरक, तिर्यंच, निगोदादि के जो दुःख अनुभव करेंगे वह, दुःकुल में प्रत्याजाति-हलके आचार-विचार प्रतिष्ठा वाले कुल में जन्म, दुर्लभ बोधित्व-धर्म की शीघ्र अप्राप्ति। ___ से किं तं सुहविवागा? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं णगराई, उजाणाई; वणसंडाई चेइयाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इद्विविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वजाओ, परियागा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुहपरंपराओ, सुकुल-पच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ, आघविजंति। . प्रश्न - वह सुख विपाक क्या है? -- उत्तर. - सुख विपाक में धर्मदान आदि सुकृत कर्मों के फलस्वरूप सुखद परिणाम पाने वाले दस जीवों के-(पूर्व सूत्रानुसार) सुखपरंपरा पहले देवलोक इत्यादिं एक के बाद एक उत्तरोत्तर , वर्धमान सुख की परम्परा।
समवायांग सूत्र में विपाक का परिचय देते हुए लिखा है "विवागसुए णं सुकडदुक्कडाण-कमाणं फल विवागा आघविजंति" अर्थात् - विपाक सूत्र सुकृत और दुष्कृत कर्मों के फल-विपाक को बताने वाला आगम है। उसमें सुखविपाक और दुःख विपाक ये दो विभाग हैं। ___ स्थानांग सूत्र में विपाक सूत्र का नाम “कम्मविवागदसाणं" "कर्म विपाकदशा" दिया है। इसी प्रकार अन्य आचार्यों ने पुण्य पाप रूप कर्म फल को विपाक एवं उसका
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