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________________ विपाक सूत्र- प्रथम श्रुतस्कन्ध की ओर से नियुक्त प्रतिनिधि, अहम्मिए - अधार्मिक, दुप्पडियाणंदे - दुष्प्रत्यानन्द - असंतोषी जो किसी तरह से प्रसन्न नहीं किया जा सके, आहेवच्चं - आधिपत्य करता हुआ, पालेमाणेपालन-रक्षण करता हुआ । भावार्थ - उस शतद्वार नगर में धनपति नाम का राजा राज्य करता था। उस नगर के अदूरसामन्त- कुछ दूरी पर (न अधिक दूर न अधिक नजदीक) दक्षिण और पूर्व दिशा के मध्य (आग्नेय कोण में) विजय वर्द्धमान नाम का एक खेट था जो ऋद्धि समृद्धि आदि से परिपूर्ण था। उस विजय वर्द्धमान खेट का पांच सौ गांवों का विस्तार था । उसमें ईकाई नाम का एक राष्ट्रकूट था जो कि महाअधर्मी, दुष्प्रत्यानन्दी (परम असंतोषी), साधु जन विद्वेषी अथवा दुष्कृत करने में ही सदा आनंद मानने वाला था। वह ईकाई विजय वर्द्धमान खेट के पांच सौ गांवों का आधिपत्य करता हुआ जीवन व्यतीत कर रहा था। तए णं से एक्काई रट्ठकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई बहूहिं करेहि य भरेहि य विद्धीहि य उक्कोडाहि य पराभवेहि य देज्जेहि य भेज्जेहि य कुंतेहि य लंछपोसेहि य आलीवणेहि य पंथकोट्टेहि य ओवीलेमाणे ओवीलेमाणे विहम्मेमाणे - विहम्मेमाणे तज़ेमाणे तज्जेमाणे तालेमाणे तालेमाणे शिद्धणे करेमाणे- करेमाणे विहरइ ॥ २४ ॥ कठिन शब्दार्थ - करेहि करों से, भरेहि करों की प्रचुरता से विद्धीहि - द्वि गुण आदि ग्रहण करने से, उक्कोडाहि - रिश्वतों से, पराभवेहि पराभव (दमन) करने से, दिज्जेहि - अधिक ब्याज से, भिज्जेहि हनन आदि का अपराध लगा देने से, कुंतेहि धन ग्रहण के निमित्त किसी स्थान आदि के प्रबन्धक बना देने से, लंछपोसेहि - चोर आदि के पोषण से, आलीवणेहि- ग्राम आदि को जलाने से, पंथकोट्टेहि पथिकों के हनन से, ओवीलेमाणे - पीड़ित करता हुआ, विहम्मेमाणे धर्म से विमुख करता हुआ, तज्जेमाणे तिरस्कृत करता हुआ, तालेमाणे ताड़ित करता हुआ, णिद्धणे - निर्धन । भावार्थ - तब वह ईकाई नामक राष्ट्रकूट राज्य नियुक्त प्रतिनिधि विजय वर्द्धमान खेट के. पांच सौ गांवों को, करो - महसूलों से, करों की प्रचुरता से, किसान आदि को दिये गये धान्य आदि के द्विगुण आदि के ग्रहण करने से, रिश्वतों से, दमन करने से, अधिक ब्याज से, हत्या आदि के अपराध लगा देने से, धन के निमित्त किसी को स्थान आदि का प्रबंधक बना देने से, २२ Jain Education International - - - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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