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________________ प्रथम अध्ययन - ईकाई राष्ट्रकूट का परिचय ! किस गोत्र का था ? किस ग्राम अथवा नगर में रहता था? क्या देकर, क्या भोग कर, क्या आचरण कर और किन पुराने कर्मों के फल को भोगता हुआ वह जीवन व्यतीत कर रहा था ? 'हे गौतम!' इस प्रकार आमंत्रण करते हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतमस्वामी से कहा हे गौतम! उस काल और उस समय में इसी जंबू नामक द्वीप के भारत वर्ष में शतद्वार नाम का एक समृद्धिशाली नगर था, नगर का वर्णन कह देना चाहिये । · विवेचन प्रस्तुत सूत्र में मृगापुत्र के पूर्व भव संबंधी किये गये प्रश्नों का भगवान् महावीर स्वामी क्रमशः उत्तर दे रहे हैं। शंका - नाम और गोत्र में क्या अंतर है? · २१ - समाधान • नाम और गोत्र में अर्थगत भिन्नता इस प्रकार है- 'नाम यादृच्छिकमभिधानं, गोत्रं तु यथार्थकुलम्' अर्थात् नाम यादृच्छिक - इच्छानुसारी होता है। उसमें अर्थ की प्रधानता नहीं भी होती, किंतु गोत्र पद सार्थक होता है किसी अर्थ विशेष का द्योतक होता है । 'पुरा जाव विहरई' में 'जाव' शब्द से निम्न पाठ का ग्रहण किया गया है "पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिकंताणं असुहाणं पावाणं कम्माणं पावगं फलविसेसं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ ।। " इन पदों का अर्थ पूर्व में दिया जा चुका है। ईकाई राष्ट्रकूट का परिचय Jain Education International तत्थ णं सयदुवारे णयरे धणवई णामं राया होत्था वण्णओ । तस्स णं सयदुवारस्स णयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरत्थिमे दिसीभाए विजयवद्धमाणे णामं खेडे होत्था रिद्धत्थिमियसमिद्धे । तस्स णं विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई आभोए यावि होत्था, तत्थ णं विजयवद्धमाणे खेडे एक्काई णामं रट्ठकूडे होत्था अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे । से णं एक्काई रङकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंचण्हं गामसवाणं आहेवच्चं जाव पालेमाणे विहरइ ॥ २३ ॥ · कठिन शब्दार्थ - अदूरसामंते - अदूरसामन्त न तो अधिक दूर और न अधिक समीप खेडे - खेट-नदी और पर्वतों से घिरा हुआ अथवा जिसके चारों ओर धूलि-मिट्टी का कोट बना हुआ हो ऐसा नगर खेट कहलाता है, आभोए - आभोग (विस्तार), रट्ठकूडे - राष्ट्रकूट राजा For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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