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प्रथम अध्ययन - ईकाई राष्ट्रकूट का परिचय.
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चोर आदि के पोषण से, ग्राम आदि को जलाने से, पथिकों के हनन (मारपीट) से, लोगों को व्यथित-पीड़ित करता हुआ, धर्म से विमुख करता हुआ तिरस्कृत, ताडित और निर्धन (धनरहित) करता हुआ जीवन व्यतीत कर रहा था। - विवेचन - जिस तरह आज भी मंडल-जिले के अंतर्गत अनेकों शहर कस्बे और ग्राम होते हैं उसी प्रकार विजय वर्द्धमान खेट में भी पांच सौ ग्राम थे। अर्थात् पांच सौ ग्रामों का एक प्रांत था। मंडल (प्रांत विशेष) से आजीविका करने वाले राज्याधिकारी को 'राष्ट्रकूट' कहा जाता है। टीकाकार ने कहा है - "राष्ट्रकूटो मण्डलोपजीवी राजनियोगिकः"। विजय वर्द्धमान खेट का एकादि (ईकाई) नाम का एक राष्ट्रकूट-राजनियुक्त प्रतिनिधि-प्रांताधिपति था। ___ ईकाई के लिए मूल पाठ में 'अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे' विशेषण दिये हैं। 'जाव' शब्द से “अधम्माणुए अधम्मिटे, अधम्मक्खाई अधम्मपलोई अधम्मपलज्जणे अधम्मसमुदाचारे अपम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणे दुस्सीले दुव्वए" का ग्रहण हुआ है। ये सब पद ईकाई के अधार्मिकता के व्याख्या रूप ही हैं। ईकाई अधर्मी-धर्म विरोधी, धार्मिक क्रियानुष्ठानों का प्रतिद्वन्द्वी और साधु पुरुषों का द्वेषी और किसी से संतुष्ट नहीं किया जाने वाला था। अतः ईकाई राष्ट्रकूट पांच सौ गांवों में निवास करने वाली प्रजा को निम्नलिखित कारणों से आचार भ्रष्ट, तिरस्कृत, ताड़ित एवं पीड़ित कर रहा था। जैसे कि - १. क्षेत्र आदि में उत्पन्न होने वाले पदार्थों के कुछ भाग को कर-महसूल के रूप में ग्रहण
करना। २. करों-टेक्सों में अन्धाधुन्ध वृद्धि करके संपत्ति को लूट लेना। ३. किसान आदि श्रमजीवी वर्ग को दिये गये अन्न आदि के बदले दुगुना तिगुना कर ग्रहण
करना। ४. अपराधी के अपराध को दबा देने के निमित्त से उत्कोच-रिश्वत लेना।
५. प्रजा अपने हित के लिये कोई न्यायोचित आवाज उठाये तो उस पर राज्य-विद्रोह के .. बहाने दमन चक्र चलाना।
६. ऋणी व्यक्ति से अधिक मात्रा में ब्याज लेना। ७. निर्दोष व्यक्तियों पर हत्या आदि का अपराध लगा कर उन्हें दण्डित करना। ... ८. अपने स्वार्थ-धन ग्रहण के निमित्त से किसी को स्थान आदि का प्रबंधक बना देना
... ' आदि।
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