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________________ प्रथम अध्ययन - माता द्वारा म मियापुत्तं दारगं उवदंसेमि। तए णं से भगवं गोयमे मियादेविं पिट्ठओ समणुगच्छइ॥१७॥ . कठिन शब्दार्थ - तहारूवे - तथारूप, णाणी - ज्ञानी, तवस्सी - तपस्वी, धम्मायरियए- धर्माचार्य, संलवइ - संलाप-संभाषण कर रही थी, भत्तवेला - भोजन समय, उवदंसेमि - दिखलाती हूँ, वत्थपरियर्ट - वस्त्र परिवर्तन, कट्ठसगडियं - काष्ठशकडीलकड़ी की छोटी गाड़ी, अणुकढमाणी - खिंचती हुई, अणुगच्छह - पीछे पीछे चलें। भावार्थ - यह सुन कर मुंगादेवी ने भगवान् गौतम से निवेदन किया - 'हे भगवन्! वह ऐसा ज्ञानी और तपस्वी कौन है? जिसने मेरी इस रहस्यपूर्ण गुप्त वार्ता को आपसे कहा, जिससे आपने उस गुप्त रहस्य को जाना है।' तब भगवान् गौतमस्वामी ने मृगादेवी को कहा - 'हे देवानुप्रिये! इस बालक का वृत्तांत मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने मेरे को कहा था, इसलिये मैं जानता हैं। जिस समय मृगादेवी भगवान् गौतम के साथ संलाप-संभाषण कर रही थी उसी समय मृगापुत्र बालक के भोजन का समय हो गया था। अतः मृगादेवी ने गौतमस्वामी से निवेदन किया कि - 'हे भगवन्! आप यहीं ठहरें। मैं मृगापुत्र बालक को आपको दिखलाती हूँ।' इतना कह कर वह जिस स्थान पर भोजनालय था वहां आती है वहां आकर प्रथम वेश परिवर्तन करती है, वस्त्र बदल कर काष्ठ शकडी-काठ की गाड़ी को ग्रहण करती है तथा उसमें अशन, पान, खादिम, स्वादिम को अधिक मात्रा में भरती है तदनन्तर उस काष्ठ शकडी को खिंचती हुई जहां पौतमस्वामी थे वहां आती है, आकर उसने भगवान् गौतमस्वामी से कहा - 'हे भगवन्! आप मेरे पीछे पीछे आएं। मैं आपको मृगापुत्र बालक को दिखलाती हूँ।' तब भगवान् गौतम मृगादेवी के पीछे-पीछे चलने लगे। माता द्वारा मृगापुत्र को दिखलाना तए णं सा मियादेवी तं कट्ठसगडियं अणुकद्दमाणी-अणुकद्दमाणी जेणेव भूमिघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चउप्पुडेणं वत्थेणं मुहं बंधमाणी भगवं गोयम एवं वयासी-तुन्भे वि णं भंते! मुहपोत्तियाए मुहं बंधह, तए णं से भगवं गोयमे मियादेवीए एवं वुत्ते समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधेइ॥१८॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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