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________________ विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध कठिन शब्दार्थ - चउप्पुडेणं - चार पुट वाले, वत्येणं - वस्त्र से, मुहं - मुख को, बंधमाणी- बांधती हुई, मुहपोत्तियाए - मुखपोतिका-एक वस्त खंड-मुख को वस्त्र से, बंधहबांध ले। ___भावार्थ - तदनन्तर वह मृगादेवी काष्ठ शकडी को खिंचती हुई जहां पर भूमि गृह था वहां आई, आकर चतुष्पुट-चार पुट वाले वस्त्र से अपने मुख (नाक) को बांधती हुई भगवान् गौतम स्वामी से इस प्रकार बोली - आप भी मुख के वस्त्र से मुंह (नाक) को बांध ले। तब भगवान् गौतमस्वामी ने मृगादेवी के इस प्रकार कहे जाने पर मुख के वस्त्र से अपने मुख (नाक) को बांध लिया। ___तए णं सा मियादेवी परंमुही भूमिघरस्स दुवारं विहाडेइ, तए णं गंधे णिग्गच्छड़ से जहाणामए अहिमडेइ वा (सप्पकडेवरे इ वा) जाव तओ वि य णं अणि?तराए चेव जाव गंधे पण्णत्ते॥१६॥ ___ कठिन शब्दार्थ - परंमुही - परांमुख होकर (पीछे मुख करके), विहाडेइ - खोलती है, अहिमडेइ - मरे हुए सर्प के समान, अणिट्ठतराए - अनिष्टतर। ___ भावार्थ - तत्पश्चात् मृगादेवी ने परांमुख होकर जब उस भूमिगृह के द्वार को खोला तब उसमें से दुर्गन्ध आने लगी वह दुर्गन्ध मृत सर्प आदि प्राणियों की दुर्गन्ध से भी अनिष्टतर थी। ____ तए णं से मियापुत्ते दारए तस्स विउलस्स असण-पाण-खाइम-साइमस्स गंधेणं अभिभूए समाणे संसि विउलंसि असण-पाण-खाइम-साइमंसि मुच्छिए० तं विउल असणं पाणं खाइमं साइमं आसएणं आहारेइ, आहारित्ता खिप्पामेव विद्धंसेइ, विद्धंसित्ता तओ पच्छा पूयत्ताए य सोणियत्ताए य परिणामेइ तं पि य णं पूयं च सोणियं च आहारे ॥२०॥ __ कठिन शब्दार्थ - अभिभूए समाणे - अभिभूत-आकृष्ट, मुच्छिए - मूर्छित, आसएणंमुख से, खिप्पामेव - शीघ्र ही, विद्धंसेइ - नष्ट हो जाता है, पूयत्ताए - पूय-पीब रूप में, सोणियत्ताए - शोणित-रुधिर रूप में, परिणामेइ - परिणमन को प्राप्त होता है। भावार्थ - तदनन्तर उस महान् अशन, पान, खादिम, स्वादिम की गंध से अभिभूतआकृष्ट तथा मूर्छित हुए उस मृगापुत्र ने उस महान् अशन, पान, खादिम, स्वादिम का मुख से आहार किया और शीघ्र ही वह नष्ट हो गया, जठराग्नि से पचा दिया गया। वह आहार शीघ्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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