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________________ १६ विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध कठिन शब्दार्थ - अणुमग्गजायए - पश्चात् उत्पन्न हुए, सव्वालंकारविभूसिए - सर्व अलंकारों से विभूषित। ___भावार्थ - तत्पश्चात् मृगादेवी ने मृगापुत्र के पश्चात् उत्पन्न हुए चार पुत्रों को सर्व अलंकारों से अलंकृत किया और अलंकृत करके भगवान् गौतमस्वामी के चरणों में नमस्कार कराया, भगवान् के चरणों में नमस्कार कराके इस प्रकार बोली - 'हे भगवन्! ये मेरे पुत्र हैं आप इन्हें देख लीजिये। ____तब भगवान् गौतमस्वामी, मृगादेवी से बोले - 'हे देवानुप्रिये! मैं तुम्हारे इन पुत्रों को देखने के लिये यहां नहीं आया हूँ किंतु तुम्हारा जो ज्येष्ठ पुत्र मृगापुत्र है जो जन्मान्ध एवं जन्मान्धरूप है, जिसको तुमने एकान्त भूमिगृह में गुप्त रूप से रखा हुआ है और जिसका तुम सावधानी पूर्वक गुप्त रूप से आहार पानी आदि के द्वारा पालन पोषण कर रही हो, मैं उसी को देखने के लिये यहां आया हूँ।' मृगापुत्र के भोजन की तैयारी तए णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी-से के णं गोयमा! से तहारूवे णाणी वा तवस्सी वा जेणं तव एसमढे मम ताव रहस्सिकए तुन्मं हव्वमक्खाए जओ णं तुम्भे जाणह? तए णं भगवं गोयमे मियं देवि एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए! मम धम्मायरिए समणे भगवं महावीरे जाव जओ णं अहं जाणामि, जावं च णं मियादेवी भगवया गोयमेण सद्धिं एयमढें संलवइ तावं च णं मियापुत्तस्स दारगस्स भत्तवेला जाया यावि होत्था। तए णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एवं वयासी-तुब्भे णं भंते! इहं चेव चिट्ठह जा णं अहं तुब्भंमियापुत्तं दारगं उवदंसेमि तिकट्ट जेणेब भत्तपाणघरए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता वत्थपरियट्टयं करेइ, करेत्ता कट्ठसगडियं गिण्हइ गिण्हेत्ता विउलस्स असण-पाण-खाइम-साइमस्स भरेइ, भरेत्ता तं कट्ठसगडियं अणुकरमाणी-अणुकद्दमाणी जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी-एह णं तुब्भे भंते! ममं अणुगच्छह जा णं अहं तुन्भं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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