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________________ ३२२ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध समाधिपूर्वक, आउक्खएणं - आयुक्षय, भवक्खएणं - भवक्षय, ठिइक्खएणं - स्थिति क्षय करके। भावार्थ - इसके बाद सुबाहुकुमार ईर्यासमिति से युक्त पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला मुनि बन गया। तत्पश्चात् सुबाहुमुनि ने स्थविर मुनियों के पास सामायिक आदि ग्यारह अंग का ज्ञान पढ़ा। पढ़कर उपवास, बेला, तेला आदि विविध प्रकार के तपों द्वारा आत्मा को भावित करके बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन करके एक मास की संलेखना द्वारा आत्मचिंतन करते हुए एक महीने का अनशन करके समाधिपूर्वक आयु पूर्ण होने पर काल करके पहले सौधर्म देवलोक में देवरूप से उत्पन्न हुआ। वहां से चव कर मनुष्य होगा, दीक्षा लेकर तीसरे सनत्कुमार देवलोक में देव होगा। वहां से चव कर मनुष्य होगा। दीक्षा लेकर पांचवें ब्रह्म देवलोक में देव होगा। वहां से चव कर मनुष्य होगा। दीक्षा लेकर सातवें महाशुक्र देवलोक में देव होगा। वहां से चव कर मनुष्य होगा, दीक्षा लेकर नववें आणत देवलोक में देव होगा। वहां से चव कर मनुष्य होगा, दीक्षा लेकर ग्यारहवें आरण देवलोक में उत्पन्न होगा। वहां से चव कर मनुष्य होगा, दीक्षा लेकर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव होगा। भविष्य कथन और सिद्धि गमन ' से णं तओ देवलोगाओ अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति कहिं उववज्जिहिति? ... गोयमा! महाविदेहे वासे जाइं इमाइं कुलाइं भवंति, अट्ठाई दित्ताई वित्ताई विच्छिण्णा विउलभवणसयणासण-जाणवाहणाइं बहुधणबहुजायरूवरययाई आओगपओगसंपउत्ताई विच्छड्डिय पउरभत्तपाणाई बहुदासीदासगोमहिसग वेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूयाई तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाहिति। तएणं तस्स दारगस्स माया णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं सुरूवं दारयं पयाहिति। जहेव पुव्वं तहेव णेयव्वं जाव भोयरएणं णोवलिप्पइ। तहेव मित्तणाइणियगसंबंधिपरिजणेणं। से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुझिहिति, केवलं बोहिं बुज्झित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सइ। से णं अणगारे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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