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________________ २६२ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध सुबाहुकुमार की धर्म जागरणा . तएणं से सुबाहुकुमारे अण्णया कयाई चाउद्दसट्टमुद्दिट्ट-पुण्णिमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेइ पडिलेहित्ता दन्भसंथारं संथरेइ, संथरित्ता दन्भसंथारं दुरुहइ, दुरुहित्ता अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए अट्ठमभत्तिए पोसहं पडिजागरेमाणे विहरइ। तएणं तस्स सुबाहुकुमारस्स पुव्वरत्तावरत्त-कालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए मणोगए संकप्पे-धण्णा णं ते गामागरणगर-खेडकब्बड-दोणमुहपट्टणासम-णिगम- संवाहसण्णिवेसा जत्थ णं समणे भगवं महावीरे विहरइ। धण्णा णं ते राईसर तलवर-माडंबिय-कोइंबिय-इब्भसेट्टि-सेणावइसत्थवाहप्पभिइओ जे णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयंति। धण्णा णं ते राईसर-तलवर-माडंबियकोडुंबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइओ जे णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वयाइं जाव गिहिधम्म पडिवज्जंति। धण्णा णं ते राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सस्थवाहप्पभिइओ जे णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सुणेति। तं जइ णं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दुइज्जमाणे इहमागच्छेज्जा जाव विहरिज्जा तए णं अहं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वएज्जा॥२१६॥ ___कठिन शब्दार्थ - पोसहसाला - पौषधशाला, पमज्जइ - प्रमार्जित किया, उच्चारपासवणभूमिं - शौच और लघुशंका करने के स्थान का, पडिलेहेइ - प्रतिलेखन किया, दब्भसंथारं - डाभ का संथारा, अट्ठमभत्तं - अष्टम भक्त-तेले का तप, गामागर-णगरखेड-कब्बड-दोणमुह-पट्टणासम-णिगम-संवाह-सण्णिवेसा - ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, निगम, संबाह, सन्निवेश, धण्णा - धन्य हैं, राईसर-तलवर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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