SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम अध्ययन - भगवान् की देशना २६३ माडंबिय-कोडुंबिय-इन्भ-सेट्ठि-सेणावइसत्थवाहप्पभिइओ - राजा, राजकुमार, तलवर (कोटवाल), माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदि। भावार्थ - किसी समय चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन वह सुबाहुकुमार पौषधशाला में आया। वहां आकर पौषधशाला को पूंजा और शौच और लघुशंका के स्थान को अच्छी तरह से देखा। फिर डाभ का संथारा बिछा कर उस पर बैठा, बैठ कर तेले का तप अंगीकार किया। पौषध सहित तेला अंगीकार करके धर्मजागरणा करने लगा। धर्मजागरणा करते हुए उस सुबाहुकुमार को अर्द्ध रात्रि के समय ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि वे ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, निगम, संबाह सन्निवेश आदि धन्य हैं जहां पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विचरते हैं। वे राजा, राजकुमार, तलवर, मांडबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, सेठ, सेनापति सार्थवाह धन्य हैं जो श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास धर्मोपदेश सुनते हैं। धर्मोपदेश सुन कर उनमें से कोई तो उनके पास दीक्षा अंगीकार करते हैं और कोई श्रावक धर्म अंगीकार करते हैं इसलिये यदि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पूर्वानुपूर्वी से चलते हुए और ग्रामानुग्राम विहार करते हुए यहां पधारें तो मैं उनके पास मुण्डित होकर दीक्षा अंगीकार करूँ। भगवान् की देशना तएणं समणे भगवं महावीरे सुबाहुस्स कुमारस्स इमं एयारूवं अज्झत्थियं जाव वियाणित्ता पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दुइज्जमाणे जेणेव हत्थिसीसे णयरे जेणेव पुप्फकरंडउज्जाणे वण्णओ कयवणमालप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणे वण्णओ तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तहेव परिसा राया णिग्गया। तएणं से सुबाहुकुमारे तं महया जहा पढमं तहा णिग्गओ। धम्ममाइक्खइ तं जहा-सव्वओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वओ परिग्गहाओ वेरमणं। तएणं सा महतिमहालिया मणूस परिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा तहेव परिसा राया पडिगया॥२१७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy