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२८२ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध
........... सड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णकोउहल्ले उठाए उट्टेइ, उट्ठाए उट्टित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छई उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करित्ता वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएंणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी-अहो णं भंते! सुबाहुकुमारे इढे इट्टरूवे कंते कंतरूवे पिए पियरूवे मणुण्णे मणुण्णरूवे मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे सुभगे पियदंसणे सुरूवे बहुजणस्स वि य णं भंते! सुबाहुकुमारे इडे इट्टरूवे जाव सुरूवे साहुजणस्स वि य णं भंते! सुबाहुकुमारे इढे इट्टरूवे जाव सुरूवे। सुबाहुणा भंते! कुमारेणं इमेयारूवा उराला माणुस्स रिद्धि किण्णा लद्धा किण्णा पत्ता किण्णा अभिसमण्णागया के वा एस आसी पुव्वभवे? किं णामए वा किं वा गोए कयरंसि वा गामंसि वा सण्णिवेसंसि वा किं वा दच्चा किं वा भोच्चा किं वा. किच्चा कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं सुवयणं सोच्चा णिसम्म सुबाहुणा कुमारेण इमा एयारूवा उराला माणुस्स रिद्धि लद्धा पत्ता
अभिसमण्णागया॥२१३॥ ___ कठिन शब्दार्थ - सत्तुस्सेहे - सात हाथ ऊँचा, कणगपुलग-णिघसपम्हगोरे - कसौटी पर घिसे हुए सोने के समान गोरा, उग्गतवे - उग्र तपस्वी, दित्ततवे - दीप्त तपस्वी, तत्ततवे - तप्त तपस्वी, उच्छूढसरीरे - शरीर की सेवा शुश्रूषा से रहित, संखित्त विउलतेयलेस्से - विपुल तेजोलेश्या को संक्षिप्त, सव्वक्खरसण्णिवाई - सर्वाक्षर सन्निपाती, झाणकोट्टोवगए - ध्यान रूपी कोठे में स्थिर, जायसहे - तत्त्वों में श्रद्धा होने से, जायसंसए - जिज्ञासा रूप संशय, जायकोउहल्ले - जिज्ञासा रूप कौतुहल, संजायसढे - सम्यक् प्रकार श्रद्धा होने से, संजाय संसए - सम्यक् संशय, संजायकोउहल्ले - सम्यक् कौतुहल, समुप्पण्णसहे - भली प्रकार श्रद्धा, समुप्पण्णसंसए - भली प्रकार संशय, समुप्पण्णकोउहल्ले - भली प्रकार कौतुहल, अभिमुहे - सामने, सुस्सूसमाणे - शुश्रूषा करते हुए, इडरूवे - इष्ट रूप वाला, कंतरूवे - कांत रूप-सुंदर रूप वाला, सोमरूवे - सौम्य रूप वाला, सुभगे - सुभग यानी सौभाग्यवान्, इमा एयारूवा- यह इस तरह की, माणुस्सरिद्धी- मनुष्य ऋद्धि, किण्णा - कैसे, लखा -
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