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________________ प्रथम अध्ययन - गौतम स्वामी की जिज्ञासा ******* *** व्रत (दिशा परिमाण, उपभोगपरिभोग परिमाण, अनर्थ दण्ड विरमण, सामायिक, देशावकासिक, पौषधोपवास और अतिथि संविभाग) रूप श्रावक के बारह व्रत धारण करना चाहता हूं । भगवान् ने फरमाया कि - हे देवानुप्रिय ! जिस प्रकार सुख हो वैसा करो किन्तु धर्म कार्य में ढीलमत करो । तत्पश्चात् उस सुबाहुकुमार ने भगवान् के पास श्रावक के बारहव्रत अंगीकार किये। फिर उस चार घंटों वाले घोड़ों के रथ पर सवार हो कर वापिस अपने घर लौट गया । “दुप्पडियारेणं” - द्वि प्रतिकार शब्द का अर्थ यह है कि जिस प्रकार उग्गा और उग्गपुत्ता ये दो शब्द हैं उसी प्रकार आगे भी दो-दो शब्द कह देने चाहिये। जैसे 'भोगा भोगपुत्ता, राइण्णा राइण्णपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता' इस प्रकार आगे प्रत्येक शब्द के साथ " पुत्ता" शब्द जोड़ देना चाहिये । इभ्य जिसके पास इतना धन हो कि जिस धन से हाथी ढक सके उसे 'इभ्य' कहते हैं । इभ्य के तीन भेद हैं- जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । जिसके पास उपरोक्त परिणाम चांदी हो वह जघन्य इभ्य, सोना हों वह मध्यम इभ्य और जवाहरात हो वह उत्कृष्ट इभ्य कहलाता है। पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रतों के विशेष स्वरूप को समझने की इच्छा वालों को अथवा श्रावक के बारह व्रत धारण करने की इच्छा वालों को संघ द्वारा प्रकाशित ' अगार - धर्म' नामक पुस्तक देखनी चाहिये । गौतम स्वामी की जिज्ञासा - २८१ **** Jain Education International तेरा कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयम गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंस संठाण संठिए वज्जरिरसहणाराय संघयणे कणगपुलगणिघसपम्हगोरे, उग्गतवे, दित्ततवे, तत्ततवे महातवे, उराले, घोरे, घोरगुणे, घोरतवस्सी, घोरबंभचेरवासी, उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से चोहसपुव्वी चउण्णाणोवगए सव्वक्खरसण्णिवाई समस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उहं जाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरड़ । तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए, जायकोउहल्ले उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोउहल्ले संजायसङ्के संजायसंसए संजायकोउहल्ले समुप्पण्ण For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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