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'विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध
भरे हुए, सेत्तं - श्वेत, रययामयं - चांदी की, भिंगारं - झारी को, जीवियारिहं - आजीविका के योग्य।
भावार्थ - तदनन्तर उस धारिणी रानी ने पूरे नौ मास और साढे सात दिन रात व्यतीत होने पर सुकोमल हाथ पैर वाले सुडौल पूर्ण पांच इन्द्रियों से युक्त शरीर वाले, स्वस्तिक आदि लक्षण और तिल मष आदि व्यंजन इन शुभ लक्षणों से युक्त यावत् चन्द्रमा की तरह सौम्य, कांत, देखने में प्रिय और सुरूप बालक को जन्म दिया। . इसके पश्चात् उस धारिणी रानी की अंगपरिचारिकाएं यानी दासियां धारिणी रानी को प्रसूता : जान कर जहां पर अदीनशत्रु राजा था वहां आई, आकर दोनों हाथ जोड़ कर जय विजय शब्दों
द्वारा यानी 'जय हो विजय हो' ऐसा कह कर अदीनशत्रु राजा को बधाई दी, बधाई देकर इस प्रकार कहने लगी - हे देवानुप्रिय! पूरे सवा नौ मास बीतने पर धारिणी रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया है। इसलिए हे देवानुप्रिय! आपकी प्रीति के लिए यह प्रिय अर्थात् शुभसंदेश आपको निवेदन किया है जो आपके लिए प्रिय हो।
. . तदनन्तर अदीनशत्रु राजा, अंगपरिचारिकाओं से इस अर्थ को यानी इस शुभ संदेश को सुन कर और हृदय में धारण करके अत्यंत हर्षित और संतुष्ट हुआ यावत् ऐसा रोमांचित हो गया जैसे कदम्ब वृक्ष के फूल पर जलधारा पड़ने से रोम उठ आये हों। वह जो आभूषण पहने हुए था, उनमें से मुकुट को छोड़कर शेष सारे आभूषण उस अंगपरिचारिका-दासी को दे दिये। देकर निर्मल जल से भरी हुई सफेद चांदी की झारी को उठाया, उठा कर उस दासी के मस्तक को धोया x धोकर आजीविका के योग्य विपुल प्रीतिवान देकर सत्कार-सम्मान किया, सत्कार सन्मान करके उसको विदा किया।
विवेचन - सवा नौ मास पूर्ण होने पर धारिणी रानी ने सर्वाज पूर्ण एक सुंदर बालक को जन्म दिया। उस समय दासियों ने राजा के पास जाकर पुत्र जन्म की बधाई दी। इस शुभ समाचार को सुनकर राजा को बड़ी खुशी हुई। उस समय वह जो आभूषण पहने हुआ था उनमें से एक मुकुट के सिवाय सारे आभूषण दासियों को इनाम में दे दिये। अपने हाथ से उनका मस्तक धोकर उनका दासपना दूर कर दिया फिर उनकी जीविका के लिए बहुत-सा प्रीतिदान देकर उनका सत्कार सम्मान करके उन्हें विदा किया।
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- स्वामी के द्वारा मस्तक धोने पर दासपना दूर हो जाता है, ऐसा लोक व्यवहार है।
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