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________________ - प्रथम अध्ययन - सुबाहुकुमार का जन्म २३६ विवेचन - राजा के मुख से उपरोक्त अर्थ को सुन कर रानी बहुत प्रसन्न हुई। गर्भ की रक्षा के लिए अधिक शीत, अधिक उष्ण, अधिक कडुआ, अधिक कषायला, अधिक खट्टा, अधिक तीखा आदि पदार्थों का त्याग करके गर्भ के लिए हितकारी, पथ्यकारी और परिमित आहार करती थी। गर्भ के प्रभाव से रानी को श्रेष्ठ दोहला उत्पन्न हुआ। उस दोहले को पूर्ण करके रानी सुखपूर्वक समय बीताने लगी। . सुबाहुकुमार का जन्म तएणं सा धारिणी देवी णवण्हं मासाणं पडिपुण्णाणं अट्ठमाणराइंदियाणं वीइक्कं ताणं सुकुमाल पाणिपायं अहीणपडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेयं जाव ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं दारगं पयाया। तएणं तीसे धारिणीए देवीए अंगपडियारियाओ धारिणीं देवीं पसूयं जाणित्ता जेणेव अदीणसत्तू राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपडिग्गहियं जाव अदीणसत्तू रायं जएणं विजएणं वद्धाति, वद्धावित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! धारिणी देवी णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारगं पयाया। तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं पियट्टयाए पियं णिवेदेमो। पियं भे भव। - तएणं अदीणसत्तू राया अंगपडियारियाणं अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ जाव धाराहयाणीव जाव रोमकूवे तासिं अंगपडियारियाणं मउडवज्जं जहा मालियं ओमोयं दलयइ, दलित्ता सेत्त रययामयं विमलसलिलपुण्णं भिगारं च गिण्हइ, गिण्हित्ता मत्थए धोवइ, धोवित्ता विउलं जीवियारहं पीइदाणं दलयइ, दलित्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसंजे॥१३॥ _____ कठिन शब्दार्थ - लक्खणवंजणगुणोववेयं - स्वस्तिक आदि लक्षण और तिले मष आदि व्यंजन लक्षणों से युक्त, अंगपडियारियाओ - अंग परिचारिकाएं-दासियां, पसूर्य - प्रसूता जान कर, पियडयाए - प्रीति के लिये, धाराहयाणीव जाव रोमकूवे - जैसे कदम्ब वृक्ष के फूल पर जल धारा पड़ने पर रोम उठ आते हों ऐसा रोमांचित, मालियं- पहने हुए, ओमोयं - आभूषण, मउडवज्ज - मुकुट को छोड़ कर, विमलसलिलपुण्णं - निर्मल जल से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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