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________________ २३८ ... विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ........................................................ _____ कठिन शब्दार्थ - णाइसीएहिं - न अधिक शीत, णाइउण्हेहि, - न अधिक उष्ण, णाइतित्तेहिं- नं अधिक तिक्त-तीखा, णाइकडुएहिं - न अधिक कडुवा, णाइकसाएहिं - न अधिक कषैला, णाइअंबिलेहिं - न अधिक खट्टा, णाइमहुरेहिं - न अधिक मधुर, .. उउभूयमाणसुहेहिं - ऋतु के अनुसार भोगे जाने वाले, भोयणच्छायणगंधमल्लेहिं - भोजन, आच्छादन यानी वस्त्र आदि और सुगंधित माला आदि पदार्थों का, पत्थं - पथ्यकारी, गन्भपोसणं- गर्भ को पुष्ट करने वाले, पइरिक्कसुहाए - एकान्त सुखकारी, मणाणुकूलाए - मन के अनुकूल, विहारभूमीए - विहार भूमि में, विवित्तमउएहिं - शुद्ध और कोमल, सयणासणेहि - शय्या और आसनों पर, पसत्थदोहला - शुभ दोहला उत्पन्न हुआ, संपुण्णदोहला - दोहला पूर्ण किया गया, सम्माणियदोहला - दोहला संमानित किया गया, अविमाणियदोहला - दोहला अच्छी तरह पूर्ण किया गया, वोच्छिण्णदोहला - दोहले संबंधी इच्छा पूर्ण हुई, ववणीयदोहला - दोहले की इच्छा दूर हुई, ववगयरोगमोहभयपरित्तासा - रोग, मोह, भय और परित्रास से रहित, सुहंसुहेणं- सुखपूर्वक, परिवहइ - धारण करने लगी। ____भावार्थ - इसके पश्चात् वह धारिणी रानी अदीनशत्रु राजा से यह अर्थ सुन कर हृदय में धारण कर अत्यंत हर्षित और तुष्ट हुई। रानी ने उस स्वप्न के अर्थ को अच्छी तरह से धारण किया, धारण करके जहां पर अपना निवासगृह था वहां आई, आकर उसने अपने महल में प्रवेश किया। तदनन्तर धारिणी रानी ने स्नान किया और स्नान करने के पश्चात् तिलक आदि. बलिकर्म किये यावत् अलङ्कार आदि पहन कर अपने शरीर को विभूषित किया। तत्पश्चात् न अधिक शीत, न अधिक उष्ण, न अधिक तिक्त-तीखा, न अधिक कडुआ, न अधिक कषैला, न अधिक खट्टा, न अधिक मधुर किंतु ऋतु के अनुसार भोंगे जाने वाले भोजन, आच्छादन अर्थात् वस्त्र आदि और सुगंधित माला आदि पदार्थों का जो उस गर्भ के लिये हित, मित और पथ्यकारी थे तथा उस गर्भ को पुष्ट करने वाले थे, उनका देश और काल के अनुसार आहार आदि का उपभोग करती हुई एकान्त सुखकारी, मन के अनुकूल, विहार भूमि में शुद्ध और कोमल शय्या और आसनों पर शयन और स्थिति करती हुई समय बिताने लगी। ___यथा समय रानी को शुभ दोहला उत्पन्न हुआ तब वह दोहला पूर्ण किया गया, सम्मानित किया गया, अच्छी तरह पूर्ण किया गया तब रानी की दोहले संबंधी इच्छा पूर्ण हुई, दोहले की इच्छा दूर हुई। रोग, मोह, भय और परित्रास से रहित होकर रानी उस गर्भ को सुखपूर्वक धारण करने लगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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