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________________ २३६ विपाक सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध विवेचन - राजा के प्रश्न को सुन कर स्वप्न पाठकों ने उस पर विचार किया, फिर उन्होंने कहा कि हे राजन्! स्वप्न शास्त्र में कुल बहत्तर स्वप्न कहे गये हैं। उनमें बयालीस साधारण स्वप्न हैं और तीस महास्वप्न हैं। इनमें से गर्भाधान के समय तीर्थंकर और चक्रवर्ती की माता चौदह, वासुदेव की माता सात, बलदेव की माता चार और माण्डलिक राजा की माता एक महास्वप्न देख कर जागृत होती है। धारिणी रानी ने एक महास्वप्न देखा है। इसलिये पूरे नौ मास बीत जाने पर वह एक पुत्र को जन्म देगी। आगे जाकर वह या तो मांडलिक राजा होगा अथवा भावितात्मा अनगार होगा। इस प्रकार स्वप्न पाठकों ने राजा से कहा। ____ चौदह स्वप्नों में बारहवें स्वप्न में 'विमान अथवा भवन' ऐसा विकल्प बतलाया गया है। इसका कारण यह है कि देवलोक से च्यव कर आने वाले तीर्थंकर की माता स्वप्न में विमान देखती है जबकि रत्नप्रभा आदि तीन पृथ्वियों में से किसी पृथ्वी से आकर जन्मने वाले तीर्थंकर की माता स्वप्न में भवन देखती है। . स्वप्न पाठकों को प्रीतिदान तएणं अदीणसत्तू राया तेसिं सुमिणपाढगाणं अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ जाव हियए करयल जाव एवं वयासी - एवमेयं देवाणुप्पिया! जाव जण्णं तुब्भे वयह ति कटु तं सुमिणं सम्मं पडिच्छइ पडिच्छित्ता ते सुमिणपाढए विउलेण असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ सक्कारिता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलइता पडिविसज्जेइ॥१०॥ ___ भावार्थ - इसके पश्चात् अदीनशत्रु राजा उन स्वप्नपाठकों से इस अर्थ को सुन कर और हृदय में धारण करके हर्षित यावत् संतुष्ट हुआ यावत् हाथ जोड़कर इस प्रकार कहा कि हे देवानुप्रियो! यह ऐसा ही है जैसा कि आप लोगों ने कहा है। ऐसा कह कर राजा ने उस स्वप्न के अर्थ को अच्छी तरह से धारण किया और विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम से तथा वस्त्र, सुगंधित माला और अलंकारों से उन स्वप्न पाठकों का सत्कार किया, सम्मान किया सत्कार करके सम्मान करके आजीविका के योग्य बहुत-सा प्रीतिपूर्वक दान दिया। दान देकर उन्हें अपने अपने घर विदा किये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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