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________________ प्रथम अध्ययन - Jain Education International राजा द्वारा स्वप्न फल कथन ******* राजा द्वारा स्वप्न फल कथन उराले णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे, कल्लाणे णं तुमे जाव सस्सिरीए णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे आरोग्गतुट्ठि दीहाउ-कल्लाण- मंगल्लकारए णं तुमे देवी सुविणे दिट्ठे । अत्थलाभो देवाणुप्पिए! भोगलाभो देवाणुप्पिए! पुत्तलाभो देवाणुप्पिए! रज्जलाभो देवाणुप्पिए! एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए! णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाणराइंदियाणं विइक्कंताणं अम्हं कुलकेउं कुलदीवं कुलपव्वयं कुलवडिंसय कुलतिलगं कुलकित्तिकरं कुलणंदीकरं कुलजसकरं कुलाधारं कुलपायवं कुलविवद्धणकरं सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरं जाव ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं देवकुमारसमप्पभं दारगं पयाहिसि । से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विष्णाय परिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते सूरे वीरे विक्कंते वित्थिण्णविउलबल - वाहणे रज्जवई राया भविस्सइ । तं उराले णं तुमे जाव सुविणे दिट्ठे आरोग्ग-तुट्ठि जाव मंगल्लकारए णं तुमे देवी! सुविदिट्ठे कट्टु धरण देविं ताहिं इट्ठाहिं जाव वग्गूहिं दुच्चं वि तच्चं वि अणुबूहइ ॥ १७८ ॥ - - कठिन शब्दार्थ - सस्सिरीए - सश्रीक यानी लक्ष्मी सहित, आरोग्गतुट्ठिदीहाउकल्लाणमंगल्लकारए - आरोग्य, संतोष, दीर्घ आयु, कल्याण और मंगल करने वाला, दिट्ठे देखा है, रज्जाभ राज्य लाभ, बहुपडिपुण्णाणं - पूरे, अद्धट्टमाणराइंदियाणं - साढे सात दिन, विइक्कंताणं - बीत जाने पर, कुलवडिंसयं- कुल के मुकुट, कुलणंदिकरं कुल की समृद्धि करने वाले, कुलपायबं- कुल को आश्रय देने में वृक्ष के समान, कुल विवद्धणकरं - कुल की वृद्धि करने वाले, ससिसोमाकारं चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाला, देवकुमारसमप्पभं - देवकुमार के समान प्रभा वाले, वित्थिण्णविउल-बल-वाहणे - विस्तीर्ण और विपुल सेना तथा वाहन यांनी हाथी, घोड़े आदि सवारी वाला, वग्गूहिं - वचनों से, अणुबूहइ - कहा । - २१६ For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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