SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . नववां अध्ययन - श्यामादेवी का आर्त्तध्यान .. १७५ सौ प्रीतिदान-दहेज दिया। तदनन्तर वह सिंहसेन कुमार उन श्यामा प्रमुख पांच सौ राजकन्याओं के साथ प्रासाद के ऊपर यावत् सानंद समय व्यतीत करता है। - तत्पश्चात् किसी अन्य समय महासेन राजा कालधर्म को प्राप्त हो गये। राजा का निष्कासन आदि कार्य पूर्ववत् किया। तत्पश्चात् राज सिंहासन पर आरूढ़ हो कर वह सिंहसेन स्वयं राजा बन गया जो कि महाहिमवान्-हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् था। श्यामादेवी का आर्तध्यान तए णं से सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अवसेसाओ देवीओ णो आढाइ णो परिजाणइ अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे विहरइ। - तए णं तासिं एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणाई पंचमाईसयाई इमीसे कहाए लट्ठाई समाणाई एवं खलु सामी सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए ४ अम्हं धूयाओ णो आढाइ णो परिजाणइ अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे विहरइ, तं सेयं खलु अम्हं सामं देविं अग्गिपओगेण वा विसप्पओगेण वा . सत्थप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्तए, एवं संपेहेंति संपेहेत्ता सामाए देवीए अंतराणि यः छिद्दाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणीओ पडिजागरमाणीओ विहरंति। तए णं सा सामा देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी एवं वयासी-एवं खलु मम पंचण्हं सवत्तीसयाणं पंचमाइसयाई इमीसे कहाए लट्ठाई समाणाई अण्णमण्णं एवं वयासी-एवं खलु सीहसेणे......जाव पडिजागरमाणीओ विहरंति, तं ण णज्जइ णं मम केणइ कुमारेणं मारिस्संतित्तिकट्ट भीया जाव जेणेव कोवघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता ओहय जाव झियाइ॥१४॥ - कठिन शब्दार्थ - अणाढायमाणे - आदर नहीं करता हुआ, अपरिजाणमाणे - ध्यान न रखता हुआ, सेयं - योग्य है, अग्गिप्पओगेण - अग्नि के प्रयोग से, विसप्पओगेण - विष के प्रयोग से, सत्थप्पओगेण - शस्त्र के प्रयोग से, पंचमाईसयाई - पांच सौ माताएं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy