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________________ १७४ विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ........................................................... उसके पूर्वभव को जानने की जिज्ञासा प्रकट की। अब सूत्रकार भगवान् महावीर स्वामी द्वारा फरमाये हुए समाधान का वर्णन करते हुए कहते हैं - . ___ भगवान् का समाधान एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे सुपइटे णामं णयरे होत्था रिद्ध०, महासेणे राया। तस्स णं महासेणस्स रण्णो धारिणीपामोक्खाणं देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्था। तस्स णं महासेणस्स रण्णो पुत्ते धारिणीए देवीए अत्तए सीहसेणे णामं कुमारे होत्था अहीण० जुवराया। तए णं तस्स सीहसेणस्स कुमारस्स अम्मापियरो अण्णया कयाइ पंच पासायवडिंसयसयाई करेंति अब्भुग्गय०। तए णं तस्स सीहसेणस्स कुमारस्स अण्णया कयाइ सामापामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकण्णगसयाणं एगदिवसे पाणिं गिहाविंसु पंचसयओ दाओ। तए णं से सीहसेणे कुमारे सामापामोक्खाहिं पंचसयाहिं देवीहिं सद्धिं उप्पिं जाव विहरइ। तए णं से महासेणे राया अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते णीहरणं.... .राया जाए महया०॥१४७॥ ___कठिन शब्दार्थ - पंचपासायवडिंसयसयाई - पांच सौ प्रासादावतंसक-श्रेष्ठ महल, पंचण्हं रायवरकण्णगसयाणं - पांच सौ श्रेष्ठ राज कन्याओं का, दाओ - प्रीतिदान-दहेज। भावार्थ - हे गौतम! उस काल और उस समय इसी जंबूद्वीप नामक द्वीप के अंतर्गत भारत वर्ष में सुप्रतिष्ठ नाम का एक ऋद्ध, स्तिमित तथा समृद्ध नगर था। वहां पर महासेन राजा राज्य करता था। उस महासेन के अंतःपुर में धारिणी प्रमुख एक हजार देवियों-रानियाँ थीं। उस महासेन का पुत्र और महारानी धारिणी देवी का आत्मज सिंहसेन नामक राजकुमार था जो कि अन्यून एवं निर्दोष पांच इन्द्रियों से युक्त शरीर वाला तथा युवराज पद से अलंकृत था। तदनन्तर उस सिंहसेन कुमार के माता पिता ने किसी समय अत्यंत विशाल पांच सौ प्रासावावतंसक-श्रेष्ठ महल बनवाए। तत्पश्चात् किसी अन्य समय उन्होंने सिंहसेन राजकुमार का श्यामा प्रमुख पांच सौ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ एक ही दिन में विवाह कर दिया और पांच Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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