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नववां अध्ययन - पूर्वभव पृच्छा
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विवेचन - आठवें अध्ययन का भाव सुनने के बाद नववें अध्ययन के भाव सुनने की अभिलाषा से आर्य जम्बू स्वामी ने सुधर्मास्वामी से निवेदन किया - हे भगवन्! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक सूत्र के आठवें अध्ययन के जो भाव फरमाये हैं वे मैने आपके श्रीमुख से सुने अब मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक सूत्र के नववें अध्ययन में क्या भाव फरमाये हैं सो कृपा कर कहिये?
जंबूस्वामी की जिज्ञासा का समाधान करने के लिये आर्य सुधर्मास्वामी ने उपरोक्तानुसार नववें अध्ययन का प्रारंभ किया है।
पूर्वभव पृच्छा तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया, तेणं कालेणं तेणं समए० जेढे अंतेवासी छट्ठक्खमण.....तहेव जाव रायमग्गमोगाढे हत्थी आसे पुरिसे पासइ, तेसिं पुरिसाणं मज्झगयं पासइ एगं इत्थियं अवओडयबंधणं उक्खित्तकण्णणासं जाव सूले भिज्जमाणं पासइ, पासित्ता इमे अज्झत्थिए....तहेव णिग्गए जाव एवं वयासी-एस णं भंते! इत्थिया पुव्वभवे का आसी?॥१४६॥ - कठिन शब्दार्थ - उक्खित्तकण्णणासं - जिसके कान और नाक दोनों ही कटे हुए हैं, सूले - शूली पर, भिज्जमाणं - भेदी जाने वाली-भिद्यमान (भेदन) किये जाने वाली।
भावार्थ - उस काल और उस समय में पृथ्वीवतंसक नामक उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ यावत् उनकी धर्मदेशना सुन कर परिषद् और राजा वापिस चले गये। उस काल और उस समय भगवान् के प्रधान शिष्य गौतमस्वामी बेले के पारणे के लिये भिक्षार्थ गये यावत् राजमार्ग में पधारे वहां हाथियों, घोड़ों और पुरुषों को देखते हैं। उनके मध्य में एक स्त्री को देखते हैं जो कि अवकोटक बंधन से बंधी हुई, जिसके नाक और कान दोनों ही कटे हुए यावत् सूली पर भेदी जाने वाली है। उस स्त्री को देख कर उनके मन में यह संकल्प उत्पन्न हुआ यावत् पूर्व की भांति नगर से निकले और भगवान् के पास आकर इस प्रकार निवेदन किया - 'हे भगवन्! यह स्त्री पूर्वभव में कौन थी?'
विवेचन - राजमार्ग में गौतमस्वामी ने नरक संबंधी वेदनाओं को स्मरण कराने वाले जिस दृश्य को देखा तो उस स्त्री की करुण दशा से द्रवित हो श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समक्ष
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