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विपाक सूत्र - प्रथम श्रुतस्कन्ध
कोवघरे - कोपगृह-जहां क्रुद्ध हो कर बैठा जाए, ऐसा एकान्त स्थान, रहित मन वाली होकर, झियाइ विचार करती है।
भावार्थ
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तदनन्तर वह सिंहसेन राजा श्यामादेवी में मूर्च्छित - उसी के ध्यान में पागल बना हुआ, गृद्ध-उसकी आकांक्षा वाला, ग्रथित उसी के स्नेह जाल में बंधा हुआ और अध्युपपन्न - उसी में आसक्त हुआ अन्य देवियों का न तो आदर करता है और न ही उनका ध्यान ही रखता है अपितु उनका अनादर और विस्मरण करता हुआ समय व्यतीत कर रहा है।
तत्पश्चात् उन एक कम पांच सौ (४६६) देवियों - रानियों की एक कम पांच सौ माताओं ने जब यह जाना कि - सिंहसेन राजा श्यामादेवी में मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और अध्युपपन्न हो हमारी पुत्रियों का न तो आदर करता है और न ही उनका ध्यान रखता है अतः हमारे लिये यही योग्य है कि हम श्यामा देवी को अग्नि प्रयोग, विषप्रयोग अथवा शस्त्र प्रयोग से जीवन रहित कर डालें। इस तरह विचार करके वे श्यामादेवी के अन्तर, छिद्र तथा विरह की प्रतीक्षा करती. हुई समय व्यतीत करने लगी ।
तदनन्तर श्यामादेवी इस वृत्तांत को जान कर इस प्रकार विचार करने लगी कि मेरी एक कम पांच सौ सपत्नियों की एक कम पांच सौ माताएं - “महाराज सिंहसेन श्यामा में अत्यंत आसक्त हो कर हमारी पुत्रियों का आदर नहीं करता " यह जान कर एकत्रित हुई और "अग्नि, विष या शस्त्र प्रयोग से श्यामा के जीवन का अंत कर देना ही हमारे लिए श्रेष्ठ है" ऐसा विचार कर वे उस अवसर की खोज में लगी हुई है। यदि ऐसा ही है तो न जाने वे मुझे किस कुमौत से मारे ? ऐसा विचार कर भीता ( भयोत्पादक बात को सुन कर भयभीत हुई ) त्रस्ता ( मेरे प्राण लूट लिये जायेंगे यह सोच कर त्रास को प्राप्त हुई) उद्विग्ना ( भय के मारे उसका हृदय कांपने लगा ) संजातभया (हृदय के साथ साथ शरीर भी कांपने लगा) होकर श्यामादेवी जहां कोप भवन था वहां आई और आकर मानसिक संकल्पों के विफल रहने से उत्साह रहित मन वाली होकर यावत् विचार करने लगी ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में महाराजा सिंहसेन का श्यामा महारानी के प्रति अधिक राग तथा अन्य रानियों के प्रति उपेक्षा भाव, इस कारण उनकी माताओं का श्यामा के प्राण लेने का विचार तथा श्यामा का भयभीत होकर कोप गृह में जाकर आर्त्तध्यान मग्न होना आदि का वर्णन किया गया है।
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ओहय सह
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