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पांचवां अध्ययन - महेश्वरदत्त द्वारा पापाचार
- ११७ .............•••••••••••••••••••••••••••••••••••••......... हृदयों के मांस पिण्डों को, संतिहोम - शांति होम, अट्ठमी चोइसीसु - अष्टमी और चतुर्दशी को, परबलेणं - परबल-शत्रुसेना के साथ, अभिजुंजइ (अभिजुज्जइ) - युद्ध करता था, अट्ठसयं - एक सौ आठ, विद्धंसेइ - विध्वंश कर देता था, पडिसेहिज्जइ - प्रतिषेध कर देता था-भगा देता था। .
__भावार्थ - महेश्वरदत्त पुरोहित जितशत्रु राजा के राज्य और बल की वृद्धि के लिए प्रतिदिन एक-एक ब्राह्मण बालक, एक-एक क्षत्रिय बालक, एक-एक वैश्य बालक और एक-एक शुद्र बालक को पकड़वा लेता था, पकड़वा कर जीते जी उनके हृदयों के मांस पिण्डों को ग्रहण करवाता था, ग्रहण करवा कर जित्तशत्रु राजा के निमित्त उन से शांति होम किया करता था।
तदनन्तर वह पुरोहित अष्टमी और चतुर्दशी में दो-दो बालकों, चार मास के चार-चार बालकों, छह मास के आठ-आठ बालकों और संवत्सर-वर्ष में सोलह-सोलह बालकों के हृदयों के मांस-पिण्डों से शांति होम किया करता था तथा जब-जब भी जितशत्रु नरेश का किसी अन्य शत्रु के साथ युद्ध होता तब-तब वह १०८ ब्राह्मण बालकों, १०८ क्षत्रिय बालकों, १०८ वैश्य बालकों और १०८ क्षुद्र बालकों को अपने पुरुषों के द्वारा पकड़वा कर उनके जीते जी हृदय के मांस पिण्डों को निकलवा कर जितशत्रु नरेश के निमित्त शांति होम करता। तदनन्तर वह जितशत्रु राजा शत्रुसेना का शीघ्र ही विध्वंश कर देता या शत्रु का प्रतिषेध कर देता था या उसे भगा देता था।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में गौतम स्वामी द्वारा कौशाम्बी नगरी के राजमार्ग पर देखे गये एक वध्यं पुरुष के पूर्व भव संबंधी प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फरमाया, उसका वर्णन किया गया है।
सर्वतोभद्र नगर के राजा जितशत्रु का राजपुरोहित महेश्वरदत्त जितशत्रु नरेश के राज्य और बल वृद्धि के लिए बालकों की हत्या करता, जीते जी उनके हृदयगत मांस पिण्डों को निकलवा कर उनके द्वारा शांति होम करता था। चारों वर्गों में से प्रतिदिन एक-एक बालक की, अष्टमी
और चतुर्दशी में दो-दो, चौथे मास में चार-चार तथा छठे मास में आठ-आठ और संवत्सर में सोलह-सोलह बालकों की बलि देने वाला पुरोहित महेश्वरदत्त मानव नहीं दानव था।
सूत्रोक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि व्यक्ति अपने निजी स्वार्थ के लिए. भयंकर से भयंकर अपराध करने से भी नहीं झिझकता है। इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र में जितशत्रु राजा के सम्मान-पात्र महेश्वरदत्त नामक पुरोहित के जघन्यतम पापाचार का वर्णन किया गया है।
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