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________________ विपाक सूत्र - प्रथम श्रुतस्कन्ध तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविजे एयसमायारे सुबहु पावकम्मं समज्जिणित्ता तीसं वाससयं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा पंचमी पुढवीए उक्कोसेणं सत्तरससागरोवमट्ठिइए णरगे उववण्णे ।। १०२ ।। भावार्थ तदनन्तर वह महेश्वरदत्त पुरोहित एतत्कर्मा - इस प्रकार के कर्मों का अनुष्ठान करने वाला, एतत्प्रधान - इन कर्मों में प्रधान, एतद्विध इन्हीं कर्मों की विद्या जानने वाला और एतत्समाचार - इन्हीं पाप कर्मों को अपना सर्वोत्तम आचरण बनाने वाला अत्यधिक पाप कर्मों को उपार्जित कर तीन हजार वर्ष की परमायु को भोग कर काल के समय काल करके पांचवीं नरक में उत्कृष्ट १७ सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उत्पन्न हुआ। से णं ताओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव कोसंबीए णयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ता भारिया पुत्तत्ताए उववण्णे । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णिव्वत्तबारसाहस्स इयं एयारूवं णामधेज्जं करेंति । जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए तम्हा णं होउ अम्हं दारए बहस्सइदत्ते णामेणं ॥ १०३ ॥ भावार्थ - तदनन्तर वह महेश्वरदत्त पुरोहित का जीव पांचवीं नरक से निकल कर सीधा इसी कौशाम्बी नगरी में सोमदत्त पुरोहित की वसुदत्ता भार्या के पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होने से पश्चात् उस बालक के माता-पिता बालक के जन्म से लेकर बारहवें दिन नामकरण संस्कार करते हुए सोमदत्त का पुत्र और वसुदत्ता का आत्मज होने के कारण उसका वृहस्पति नाम रखते हैं। ११८ - तए णं से बहस्सइदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव परिवहइ । तए णं से बहस्सइदत्ते उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुप्पत्ते विण्णयपरिणयमेत्ते होत्था । सेणं उदायणस्स कुमारस्स पियबालवयस्सए यावि होत्था सहजायए सहवडियए सहपंसुकीलियए। तए णं से सयाणीए राया अण्णया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते । तए णं से उदायणकुमार बहूहिं राईसर जाव सत्थवाहप्पभिईहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे सयाणीयस्स रग्णो महया इड्डीसक्कारसमुदएणं णीहरणं करे, करेत्ता बहूइं लोइयाई मयकिच्चाई करे ॥ १०४ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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