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________________ ११६ विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध +++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ भावार्थ - उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी कौशाम्बी नगरी के बाहर चन्द्रावतरण उद्यान में पधारे। उस काल उस समय भगवान् गौतम स्वामी पूर्व की भांति यावत् राजमार्ग में पधारे। वहाँ हाथियों, घोड़ों और पुरुषों को तथा उन पुरुषों के मध्य में एक पुरुष को देखते हैं। उसको देख कर मन में चिंतन करते हैं और वापिस आकर भगवान् से उसके पूर्वभव के विषय में पूछते हैं। तब भगवान् उसके पूर्वभव का वर्णन करते हैं। इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम! उस काल और उस समय में इसी जंबूद्वीप नामक द्वीप के अंतर्गत भारत वर्ष में सर्वतोभद्र नामक नगर था। जो ऋद्ध-भवनादि की बहुलता से युक्त, स्तिमित-आन्तरिक और बाह्य उपद्रवों के भय से रहित तथा समृद्ध-धन धान्यादि की समृद्धि से . परिपूर्ण था। उस सर्वतोभद्र नगर में जितशत्रु नामक राजा था। उस जितशत्रु राजा का महेश्वरदत्त नामक पुरोहित था जो कि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वणवेद में भी कुशल था। महेश्वरदत्त द्वारा पापाचार तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए जियसत्तुस्स रण्णो रज्ज-बल-विवद्धणअट्टयाए : कल्लाकल्लिं एगमेगं माहणदारयं एगमेगं खत्तियदारयं एगमेगं वइस्सदारयं एगमेगं सुद्ददारयं गिण्हावेइ गिण्हावेत्ता तेसिं जीवंतगाणं चेव हिययउंडए गिण्हावेइ गिण्हावेत्ता जियसत्तुस्स रण्णो संतिहोमं करेइ। तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए अट्टमीचोदसीसु दुवे दुवे माहण-खत्तिय-वइस्स-सुद्दे चउण्हं मासाणं चत्तारि चत्तारि छण्हें मासाणं अट्ठ अट्ठ संवच्छरस्स सोलस सोलस जाहे जाहेवि य णं जियसत्तू राया परबलेणं अभिमुंजइ ताहे ताहेवि य णं से महेसरदत्ते पुरोहिए अट्ठसयं माहणदारगाणं अट्ठसयं खत्तियदारगाणं अट्ठसयं वइस्सदारगाणं अट्ठसयं सुद्ददारगाणं पुरिसेहिं गिण्हावेइ गिण्हावेत्ता तेसिं जीवंतगाणं चेव हिययउंडीओ गिण्हावेइ गिण्हावेत्ता जियसत्तुस्स रण्णो संतिहोमं करेइ, तए णं से परबले खिप्पामेव विद्धंसिज्जइ वा पडिसेहिज्जइ वा॥१०१॥ कठिन शब्दार्थ - रज्ज - राज्य, बल - बल-शक्ति, विवद्धणअट्ठयाए - विवर्द्धन के लिए, कल्लाकल्लिं - प्रतिदिन, माहणदारगं - ब्राह्मण बालक को, खत्तियदारगं - क्षत्रिय बालक को, वइस्स दारगं - वैश्य बालक को, सुद्ददारगं - शुद्र बालक को, हिययउंडए - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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