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________________ चतुर्थ अध्ययन - आगामी भव-पृच्छा ११३ निक्षेप - उपसंहार पूर्ववत् समझ लेना चाहिये। इस प्रकार चतुर्थ अध्ययन संपूर्ण हुआ। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी की जिज्ञासा का समाधान करते हुए शकटकुमार के भावी जीवन का दिग्दर्शन कराया है। जो इस प्रकार है - शकटकुमार की ५७ वर्ष की आयु पूरी होने पर वह रत्नप्रभा नामक पहली नरक में जन्म लेगा। वहाँ की भवस्थिति पूरी कर वह राजगृह नगर में एक चांडाल के यहाँ युगल रूप से उत्पन्न होगा। यहाँ उसका नाम शकट और कन्या का नाम सुदर्शना रखा जायगा। यौवनावस्था प्राप्त होने पर शकटकुमार अपनी बहिन सुदर्शना के रूप यौवन में आसक्त हो उसके साथ विषय भोगों का सेवन करेगा और कूटग्राही बन कर अपनी पाप प्रवृत्तियों में वृद्धि करेगा। फलस्वरूप मर कर प्रथम नारकी में नैरयिक रूप से. उत्पन्न होगा। प्रथम अध्ययन में वर्णित मृगापुत्र के समान ही शकट का जीव नरक से निकल कर अन्यान्य गतियों में परिभ्रमण करेगा। अंत में वाराणसी के श्रेष्ठिकुल में उत्पन्न होकर सम्यक्त्व लाभ प्राप्त करेगा और साधु धर्म का सम्यक् पालन कर प्रथम सौधर्म देवलोक में देव रूप से उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा और सभी दुःखों का अंत करेगा। ... निक्षेप अर्थात् जम्बूस्वामी से सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं कि - हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःख विपाक के चौथे अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) भाव फरमाया है। इस प्रकार मैं कहता हूँ। अर्थात् जैसा भगवान् से मैंने सुना है वैसा तुम्हें कहा है इसमें मेरी अपनी कोई कल्पना नहीं है। इस प्रस्तुत चौथे अध्ययन में मुख्य रूप से मांसाहार त्याग और ब्रह्मचर्य पालन की प्रेरणा प्रदान की गयी है। मांसाहार सेवन और ब्रह्मचर्य विनाश के कैसे दुष्परिणाम होते हैं, इसका सुंदर चित्रण आगमकार ने शकटकुमार के जीवन वृत्तांत में किया है। . ॥ चतुर्थ अध्ययन समाप्त। * * * * Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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