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विपाक सूत्र - प्रथम श्रुतस्कन्ध
विवेचन - श्री जम्बूस्वामी ने विपाकसूत्र के तीसरे अध्ययन में चोर सेनापति श्री अभग्नसेन का जीवन वृत्तांत सुधर्मा स्वामी के मुखारविंद से ध्यानपूर्वक सुना तो उनके हृदय में विपाक सूत्र के चौथे अध्ययन के भाव श्रवण की जिज्ञासा उत्पन्न हुई अतः उन्होंने सुधर्मा स्वामी के चरणों में चौथे अध्ययन के भाव फरमाने हेतु प्रार्थना की।
सुधर्मास्वामी ने फरमाया कि हे जम्बू! इस अवसर्पिणी काल के चौथे आरे में साहजन नाम की वैभवशाली नगरी थी। उस नगरी के बाहर ईशानकोण में देवरमण उद्यान था। उस उद्यान में अमोघ नामक यक्ष का स्थान बहुत प्राचीन तथा सुंदर था । साहंजनी नगरी के राजा महाचन्द्र थे। जिस प्रकार हिमालय आदि पर्वत निष्प्रकंप तथा महान् होते हैं उसी प्रकार नरेश महाचन्द्र भी धैर्यशील और महाप्रतापी थे। राजा के सभी गुणों से युक्त और प्रजा के न आनंदित करने वाले थे।
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महाचन्द्र के सुषेण नामक एक सुयोग्य अनुभवी मंत्री था जो साम, भेद, दण्ड और दान नीति के विषय में पूरा पूरा निष्णात था और इन के प्रयोग से वह विपक्षियों का निग्रह करने में भी पूरी निपुणता प्राप्त किये हुए था ।
शकट - परिचय
तत्थ णं साहंजणीए णयरीए सुदरिसणा णामं गणिया होत्था वण्णओ । तत्थ णं साहंजणीए णयरीए सुभद्दे णामं सत्थवाहे होत्था - अड्डे० । तस्स णं सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा णामं भारिया होत्था अहीण - पडिपुण्ण-पंचेंदियसरीरा । तस्स णं सुभद्दसत्थवाहस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए सगडे णामं दारए होत्था अहीणपडिपुण्ण - पंचिंदियसरीरे ॥ ८८ ॥
भावार्थ उस साहंजनी नगरी में सुदर्शना नाम की गणिका वेश्या थी जिसका वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिये। उस साहंजनी नगरी में सुभद्र नामक सार्थवाह था जो कि धनी एवं बड़ा प्रतिष्ठित था । उस सुभेद्र सार्थवाह की भद्रा नामक भार्या थी जो अन्यून एवं निर्दोष पंचेन्द्रिय शरीर वाली थी। उस सुभद्र सार्थवाह का पुत्र और भद्रा भार्या का आत्मज शकट नाम का बालक था जो कि अन्यून एवं निर्दोष पंचेन्द्रिय शरीर से युक्त था ।
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