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________________ चतुर्थ अध्ययन - गौतम स्वामी की जिज्ञासा का समाधान १०३ गौतम स्वामी की जिज्ञासा का समाधान तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे.........समोसरणं। परिसा राया य णिग्गए, धम्मो कहिओ, परिसा रा० पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जाव रायमग्गमोगाढे, तत्थ णं हत्थी आसे पुरिसे....तेसिं च णं पुरिसाणं मज्झगयं पासइ एगं सइत्थीयं पुरिसं अवओडयबंधणं उक्खित्त जाव घोसिजमाणं चिंता तहेव जाव भगवं वागरेइ।६। भावार्थ - उस काल तथा उस समय में साहंजनी नगरी के बाहर देवरमण उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ। भगवान् के दर्शनार्थ परिषद् (जनता) और राजा निकले। भगवान् ने उन्हें धर्मदेशना दी। परिषद् चली गई। राजा भी चले गये। उस काल तथा उस समय में श्रमण भमवान महावीर स्वामी के ज्येष्ठ शिष्य श्री गौतमस्वामी यावत् राजमार्ग में गये। वहां उन्होंने हाथियों, अश्वों और पुरुषों को देखा। उन पुरुषों के मध्य में स्त्री सहित अवकोटक बंधन अर्थात् जिस बंधन में गल और दोनों हाथों को मोड़ कर पृष्ठ भाग पर रज्जु के साथ बांधा जाए उस बंधन से युक्त जिसके कान और नासिका कटे हुए हैं यावत् उद्घोषणा से युक्त एक पुरुष को देखते हैं, देख कर गौतमस्वामी ने विचार किया और भगवान् से आकर निवेदन किया यावत् भगवान् महावीर स्वामी गौतमस्वामी के उत्तर में इस प्रकार कहते हैं - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में भिक्षार्थ गये गौतमस्वामी ने क्या दृश्य देखा, उसका वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है - - जब भगवान् महावीर स्वामी की आज्ञा लेकर गौतमस्वामी भिक्षा के निमित्त साहंजनी नगरी के राजमार्ग में पहुंचे तो वहां हाथियों के झुंड, घोड़ों के समूह और सैनिक पुरुषों को देखते हैं। उन सैनिकों के बीच में एक स्त्री सहित पुरुष को देखा जिसके कान, नाक कटे हुए थे और वह अवकोटक बंधन से बंधा हुआ था तथा राजपुरुष उन दोनों को (स्त्री व पुरुष को) कोड़ों से पीट रहे थे तथा उद्घोषणा कर रहे थे कि इन दोनों को कष्ट देने वाले यहां के राजा अथवा कोई अधिकारी आदि नहीं हैं किंतु इनके अपने दुष्कर्मों के कारण ही ये कष्ट पा रहे हैं। राजकीय पुरुषों के द्वारा की गई उस स्त्री पुरुष की इस दयनीय दशा को देख कर गौतमस्वामी सोचने लगे कि - मैंने नरकों को नहीं देखा किंतु श्रुतज्ञान के बल से नरकों के विषय में जो जाना है उससे यह प्रतीत होता है कि यह पुरुष नरक के समान ही यातना को प्राप्त कर रहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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