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________________ सगडे णामं चउत्थं अज्डायणं · शकट नामक चतुर्थ अध्ययन उत्थानिका-प्रस्तावना - इस चतुर्थ अध्ययन में ब्रह्मचर्य की महिमा और मैथुन के दुष्परिणामों का वर्णन किया गया है। जिसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है - ____ जइ णं भंते!.....चउत्थस्स उक्खेवो, एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं साहजणी णामं णयरी होत्था रिद्धस्थिमियसमिद्धा। तीसे णं साहंजणीए णयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए देवरमणे णामं उज्जाणे होत्था। तत्थ णं अमोहस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था-पुराणे०। तत्थ णं साहंजणीए णयरीए महचंदे णामं राया होत्था-महया०। तस्स णं महचंदस्स रण्णो सुसेणे णामं अमच्चे होत्था सामभेयदंड० णिग्गह कुसले॥७॥ ___ कठिन शब्दार्थ - जक्खाययणे - यक्षायतन, णिग्गह - निग्रह करने में, कुसले - कुशल-प्रवीण। भावार्थ - हे भगवन्! यदि तीसरे अध्ययन का इस प्रकार अर्थ प्रतिपादन किया है तो हे भगवन्! चतुर्थ अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया गया है?' - जम्बूस्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं कि-हे जम्बू! उस काल और उस समय में साहंजनी नाम की नगरी थी जो ऋद्धि समृद्धि तथा धन धान्यादि से परिपूर्ण थी। उस साहंजनी नगरी के बाहर उत्तर पूर्व दिशा के मध्य भाग (ईशान कोण) में एक देवरमण उद्यान था। उस उद्यान में अमोघ नाम के यक्ष का यक्षायतन था जो कि पुरातन था। उस साहंजनी नगरी में महाचन्द्र नामक राजा राज्य करता था जो हिमालय आदि पर्वतों के समान दूसरे राजाओं की अपेक्षा महान् था। उस महाचन्द्र राजा का सामनीति, भेदनीति, दण्डनीति का प्रयोग करने वाला और न्याय नीति की विधियों को जानने वाला, निग्रह करने वाला तथा प्रवीण सुषेण नाम का अमात्य-मंत्री था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004199
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size7 MB
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